ऑस्ट्रेलिया में तापमान के बढ़ते ही फ़ेडरल और न्यू साउथ वेल्स की सरकारों ने एडवाइजरी जारी करते हुए लोगों से अपील की है कि वह घर से बहार निकलते समय अपना विशेष ध्यान रखें। सरकारों का कहना है कि अल्ट्रावायलेट यानी सूरज की पराबैंगनी किरणों से त्वचा और आँखों का कैंसर जैसी गंभीर बीमारियां हो सकती है और इससे बचने के लिए लोगों को कुछ सावधानियां बरतनी चाहिए।
ऑस्ट्रेलिया में गर्मियों की छुट्टियां मानाने के लिए लोग अक्सर पहाड़ो और समुद्री तटों का रुख करते हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि लोग अपना अधिकतर समय बाहर धूप में बिताते हैं, तो ऐसे में उन्हें अल्ट्रावायलेट किरणों से बचने के लिए काले चश्मों, सनस्क्रीन और पूरे कपड़े पहनने चाहिए।
मुख्य बातें:
- नेत्र रोग विशेषज्ञ चंद्रा बाला कहते हैं आप अपना धूप और नज़र का चश्मा यंही ऑस्ट्रेलिया में ही बनवाए
- पूरी तरह से अल्ट्रावायलेट किरणों से सुरक्षा प्रदान करने वाले धूप के चश्मे का ही इस्तेमाल करें
- अल्ट्रावायलेट किरणों से बचने के लिए सनस्क्रीन, टोपी और पूरे कपड़े पहनने चाहिए
नेत्र रोग विशेषज्ञ और एसोसिएट प्रोफेसर डॉ चंद्रा बाला बताते हैं कि अल्ट्रावायलेट किरणों में सूरज की सामान्य किरणों से अधिक ऊर्जा होती है, जिससे आँखों में कम और लंबी अवधि में कई नुकसान हो सकते हैं।
डॉ बाला कहते हैं कि कई बार ऐसा देखा गया है कि बच्चे खेल-खेल में सूरज से नजरें मिलते हैं, जिससे उनकी आँखों को भारी क्षति पहुंचती है।
डॉ बाला कहते हैं, "अगर आप सूर्य से 20-30 सेकंड तक बिना पलक झपकाए आँखें मिलाते हैं तो इससे आपका रेटिना यानी दृष्टिपटल जल सकता है और आप अपनी आँखों की रोशनी को हमेशा के लिए खो सकते हैं। इसलिए अक्सर यह सलाह भी दी जाती है कि आप सूर्यग्रहण के समय सूर्य की तरफ सीधा न देखें।"
डॉ बाला बताते हैं कि लंबे समय तक धूप में काम करने से या बाहर समय व्यतीत करने से आँखों का कैंसर हो सकता है या मोतियाबिंद की समस्या समय से पहले आ सकती है। वह कहते हैं कि यह बहुत जरूरी है कि आप ऑस्ट्रेलिया के मानको के आधार पर तैयार किए गए धूप के काले चश्मों का ही इस्तेमाल करें।
डॉ बाला कहते हैं, "भारत और ऑस्ट्रेलिया द्वारा निर्धारित मानको में काफी अंतर है। ऑस्ट्रेलिया के मानको के अनुसार धूप के काले चश्मों में अल्ट्रावायलेट की तीनों किरणों, ए, बी और सी, को रोकने की छमता होनी चाहिए। अक्सर भारतीय समुदाय के लोग या तो भारत से आते हुए अपना चश्मा साथ में लाते हैं या फिर छुट्टियों में जब वह भारत जाते हैं तो वंहा दाम कम होने की वजह से चश्मा खरीद लेते हैं।
मेरी सलाह यही होगी कि आप अपना धूप और नज़र का चश्मा यंही ऑस्ट्रेलिया में ही बनवाए। आप धूप का चश्मा कैंसर कॉउन्सिल से भी खरीद सकते हैं।
न्यू साउथ वेल्स सरकार के एक सर्वेक्षण के अनुसार राज्य की 61 फीसदी वयस्क जनसंख्या हमेशा या अक्सर धूप में बाहर निकलने पर धूप के चश्मे का इस्तेमाल करती है। हालांकि, 18-24 आयु वर्ग में केवल 43 प्रतिशत लोग ही धूप के चश्मे का इस्तेमाल करते हैं। पुरुषों की तुलना में महिलाओं में हमेशा या अक्सर धूप के चश्मे पहनने की संभावना को अधिक पाया गया है।
इन आसान सावधानियों से कम कर सकते हैं आप इस गर्मी में आंखों के नुकसान का खतरा:
1. पूरी तरह से अल्ट्रावायलेट किरणों से सुरक्षा प्रदान करने वाले धूप के चश्मे का ही इस्तेमाल करें। चश्मा खरीदते समय उस पर यूवी 400 की मोहर को देखें। ऑस्ट्रेलिया में, चश्मे को शून्य (फैशन आईवियर) से श्रेणी चार (सूरज की चमक और यूवी संरक्षण के साथ अत्यधिक विशिष्ट चश्मा) में वर्गीकृत किया जाता है। खरीदते समय कम से कम श्रेणी तीन वाले चश्मे को प्राथमिकता दें।
2. चश्मे के आकर पर ध्यान दें। रैपअराउंड स्टाइल आंखों को बेहतर सुरक्षा प्रदान करते हैं। खेल खेलते समय आंखों को चोट से बाचने के लिए शैटर-प्रूफ पॉली कार्बोनेट लेंस चुनें। धूप का चश्मा भी पलकों को अल्ट्रावायलेट किरणों से होने वाली क्षति से बचा सकता है। पलकों की त्वचा शरीर में सबसे पतली होती है, जिससे त्वचा के कैंसर का खतरा हो सकता है।
3. हमेशा बाहर टोपी पहनें। घने बादल भी यूवी प्रकाश के सभी स्पेक्ट्रम को अवरुद्ध नहीं करते हैं।
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