अभिषेक पाराशर द्वारा लिखित और निर्देशित लघु फिल्म ‘एक्रॉस बॉर्डर्स’ ऑस्ट्रेलिया में नस्लवाद दर्शाती है और इस फिल्म को खासी प्रशंसा मिली है। फिल्म को बाफ्टा-मान्यता प्राप्त फिल्म समारोह, फ्लिकरफेस्ट में चुना गया था।
फिल्म में एक भारतीय परिवार के संघर्ष और परिवार के पड़ोसी द्वारा किये जा रहे उत्पीड़न को चित्रित किया गया है।
यह पूछने पर कि फिल्म की कहानी का यह विषय ही क्यों चुना तो अभिषेक पाराशर ने बताया, ”क्योंकि यह एक ऐसा विषय है जिसे आम तौर पर मीडिया में कवर नहीं किया जाता है, न ही समाज में इसके बारे में बात की जाती है। यह सिर्फ अप्रवासी जीवन के हिस्से के रूप में स्वीकार किया जाता है।"
खास बातें:
- लघु फिल्म 'एक्रॉस बॉर्डर्स’ नस्लवाद के विषय को चित्रित करती है
- फिल्म के फिल्मांकन में ५ दिन लगे
- फिल्म दो पीढ़ियों की मानसिकता को भी दिखाती है
ऑस्ट्रेलिया में एक भारतीय परिवार मे जन्में अभिषेक पाराशर की यह फिल्म उनके फिल्म स्कूल SAE Creative Media Institute. के फाइनल प्रोजेक्ट के लिये थी। उन्होंने बताया कि इस अप्रवासी मानसिकता के बारे में उन्हें कई तरह के अनुभव हैं।उन्होंने कई लोगों को इस स्थिती में देखा है।
फिल्म एक ऐसे पिता के बारे में है जो पड़ोसियों द्वारा हो रहे दुर्व्यवहार को नज़रअंदाज़ करते रहते हैं और बात बढ़े नहीं तो माफी माँगने से भी नहीं झिझकते। और यही सलाह वह बच्चों को भी देते हैं खासतौर पर अपनी बेटी को जो इससे सहमत नहीं होती है।
“पिता अपने आप को भाग्यशाली समझते हैं कि वह यहाँ ऑस्ट्रेलिया में आकर बसे हैं।” पाराशर ने फिल्म में पिता के चरित्र के बारे में बताया।
फिल्म में पिता और बेटी के बीच का तनाव स्पष्ट दिखता है। बेटी, जो ऑस्ट्रेलिया में पैदा हुई , वह इसका विरोध करना चाहती है जब पड़ोसी रात में उनके बिन को गिरा कर जाते या उन्हें तंग करने के लिये जोर जोर से संगीत बजाते हैं।
वह निराश हो जाती है जब उसके पिता इसे अनदेखा करना चाहते हैं।
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परिवार में यह बोझल, निराश स्थिती अक्सर रात के खाने के समय दिखती है जब सब लोग घर में एक साथ हैं।
पाराशर बताते हैं, ”मैं भाग्यशाली हूं कि मेरे माता-पिता ऐसे नहीं हैं, लेकिन मैंने अपने कई परिवारिक मित्रों और दोस्तों में इस मानसिकता को देखा है। उन्हें लगता है कि अगर कोई उनके प्रति नकारात्मक प्रतिक्रिया करता है तो उन्हें माफी मांगनी चाहिए - ऐसा लगता है जैसे वे गोरे आस्ट्रेलियाई लोगों से हीन महसूस करते हैं।"
मेलबर्न में इस फिल्म की शूटिंग में पांच दिन लगे। फिल्मांकन में कई चुनौतियों का सामना करना पड़ा। आखिरी समय पर शूटिंग की लोकेशन बदल जाने के कारण फिल्म के रूप रंग में बदलाव करना पड़ा।
पाराशर का कहना है, "वह काफी तनावपूर्ण समय था।"
एसबीएस हिन्दी से बात करते हुये अभिषेक पाराशर ने बताया कि भविष्य में वह इसी तरह अन्य सामाजिक विषयों पर फिल्में बनाना चाहेगें ताकि लोगों की सोच में बदलाव आ सके।
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