हर साल 26 जनवरी को ऑस्ट्रेलिया उस दिन को याद करता है जब सन 1788 में अंग्रेज़ी हुकूमत ने यहां अपना अधिपत्य स्थापित किया था। ब्रितानी औपनिवेशीकरण की शुरुआत के इस दिन को ‘ऑस्ट्रेलिया डे’ कहना विवादास्पद रहा है। एबोरिजिनल और टोरेस स्ट्रेट आइलैंडर लोगों के लिए सन 1938 से यह दिन विरोध के रूप में ‘शोक का दिन’ रहा है। हाल के सालों में इस दिन को ‘आक्रमण दिवस’ या ‘सर्वाइवल डे’ भी कहा जाने लगा है।
अलग-अलग समुदाय और व्यक्ति ‘26 जनवरी’ के दिन को अलग अलग तरह से देखते हैं। इन अलग अलग परिभाषाओं के मूल में संकल्पना संप्रभुता की ही रही है जिसका अर्थ है आदिवासी ऑस्ट्रलियाईयों का अपनी धरती, शिक्षा, न्याय, नीति, स्वास्थ्य आदि पर वह प्राकृतिक अधिकार जो यूरोपियाई आगमन से पहले था और जिसे कभी भी किसी और के हवाले नहीं किया गया था।
जहां तक एबोरिजिनल और टोरेस स्ट्रेट आइलैंडर अधिकारों की बात है, संप्रभुता की परिभाषा पर बहुत हद तक एक राय ही बनी हुई है। हालांकि, आदिवासी समुदायों में संप्रभुता के विभिन्न अर्थ हैं।
यह पहचान, संधि, अपनी आवाज़ और सत्य पर केन्द्रित ऑस्ट्रेलिया की सार्वजनिक चर्चा का शुरूआती बिंदु है। इन विभिन्न विचारों ने आदिवासी पहचान के उन अलग अलग मॉडलों को आकार दिया है जिस पर आज यह देश चर्चा कर रहा है।
‘पहचान’
आदिवासी पहचान को सही मायनों में अर्थ देने का एक प्रस्तावित रास्ता यह भी है कि ऑस्ट्रलियाई संविधान में आदिवासी लोगों को पहचाना जाए। 2020 के संवैधानिक सुधार ’80 के दशक से अब तक हुए विशेषज्ञ समूहों, सीनेट जांचों, संवैधानिक समितियों, मतसंग्रह समितियों, रिपोर्टों और सलाहों के बोझ तले दबे हुए हैं।
इन चर्चाओं में सबसे अधिक लोकप्रिय मॉडल ‘ह्रदय से उलुरु वक्तव्य’ है। इस वक्तव्य को देश भर में एबोरिजिनल और टोरेस स्ट्रेट आइलैंडर समुदायों के साथ 13 तीन दिवसीय चर्चाओं का निचोड़ माना जाता है।
डीन पार्किन उलुरु वक्तव्य के लिए सार्वजनिक जागरूकता अभियान ‘फ्रॉम द हार्ट’ के निदेशक हैं। वे कहते हैं वे संसद तक अपनी बात पहुंचाने के लिए सार्वजनिक समर्थन एकत्र कर रहे हैं।
वे कहते हैं, “हमारा 100 प्रतिशत मत उलुरु वक्तव्य के साथ है। अपनी आवाज़, संधि और सत्य, जो हमारे एजेंडा का एक बड़ा हिस्सा हैं, के साथ हम चाहते हैं कि एबोरिजिनल और टोरेस स्ट्रेट आइलैंडर समुदाय की आवाज़, उनका प्रतिनिधित्व संसद तक पहुंचे, उनकी आवाज़ ऑस्ट्रलियाई जनतंत्र से बात करे, यह आवाज़ ऑस्ट्रेलिया के संविधान में संरक्षण पाए, ताकि पूर्व में नकार दी गयी पहचानों की तरह यह खो न जाए।”
‘अपनी आवाज़’
आदिवासी ऑस्ट्रलियाई लोगों को संविधान में उनकी पहचान देने का औचित्य यह है कि उन्हें उनकी ‘अपनी आवाज़’ मिल सके ताकि वे अपने समुदाय से जुड़े निर्णय स्वतंत्र होकर ले सकें।
पर कुछ लोगों का मानना है कि यह ‘आवाज़’ एक प्रतिनिधि समिति बना कर भी हासिल की जा सकती है जो ‘संसद में आवाज़’ बनने की जगह ‘सरकार में आवाज़’ बने। इंडिजेनस ऑस्ट्रलियंस मंत्री केन वायट भी इसी मत के हैं।
वे कहते हैं, “सच्चाई तो यह है कि आपकी आवाज़ संसद में तो हो सकती है, लेकिन सरकार में आवाज़ होने का मतलब यह है कि जो भी पार्टी सत्ता में है, जिनके पास निर्णय लेने की शक्ति है, नीतियां बनाने की शक्ति है और आर्थिक सहयोग प्रदान करने की शक्ति है, आप उस पार्टी पर, उस सरकार पर अपना प्रभाव डाल सकेंगे। संसद में आवाज़ भी सरकार में आवाज़ के ज़रिये ही आती है।”
पर बंजालंग और कंगाराकन महिला दानी लार्किन के लिए श्री वायट का संविधान में सम्मिलित न होकर एक अलग समिति बनाने का यह प्रस्ताव ‘निराश करने वाला’ और ‘दुर्भाग्यपूर्ण’ है।
वे कहती हैं, “संसद में आवाज़ के इस कदम को अब संवैधानिक मतसंग्रह की ओर अग्रसर करने के लिए समर्थन बढ़ रहा है, ताकि इस आवाज़ को भविष्य में किसी नयी नीति से चुप न कराया जा सके। अगर ऐसा होता है तो यह उन सभी कार्यकर्ताओं, ख़ासकर बुजुर्गों के लिए बहुत निराशाजनक होगा जिन्होंने अब तक इस अभियान में हिस्सा लिया है। यह दुर्भाग्यपूर्ण होगा।”
‘संधि’
दूसरा सबसे अधिक चर्चा में रहने वाला विषय है ‘संधि’, जिसका अर्थ है कि सरकार और आदिवासी लोगों के बीच एक आधिकारिक करार जिसके अंतर्गत ब्रितानी अधिग्रहण और प्रथम राष्ट्रों से उनकी ज़मीन छीने जाने से पहले से एबोरिजिनल और टोरेस स्ट्रेट आइलैंडर समुदायों के अस्तित्व की पहचान की जाएगी। कई लोगों के अनुसार, संसद में आवाज़ से पहले ऐसी एक राष्ट्रीय संधि, या क्षेत्र-आधारित संधि पहला धेय होनी चाहिए। इस संधि का अर्थ होगा कि आदिवासी संप्रभुता स्थापित होगी और सुलह और सत्यावाचन की शुरुआत होगी। कनाडा, अमरीका और न्यू ज़ीलैण्ड ने भी अपने प्रथम राष्ट्र व्यक्तियों के साथ इसी तरह की संधि की है।
इसी लिए आदिवासी ऑस्ट्रलियाईयों का एक समूह 2017 में उलुरु वार्ता को बीच में ही छोड़ कर चला गया था। इस समूह के साथ विक्टोरिया की प्रतिनिधि, गुन्नाई और गुंडीजमारा महिला लीडिया थोर्प भी शामिल थीं, जो अब विक्टोरिया में ऑस्ट्रलियन ग्रीन्स की सांसद हैं।
उनका कहना है कि अब भी हर समुदाय और हर राष्ट्र को सम्मिलित करने वाली एक सलाहकारिता प्रक्रिया की आवश्यकता तो होगी ही।
वे कहती हैं, “यह उनका अधिकार है कि वे तय करें कि वे क्या चाहते हैं, और उनकी क्या ज़रूरते हैं। मेरा मानना है कि हमें यह सुनिश्चित करने की ज़रूरत है कि हम लोगों के साथ सम्मानपूर्वक चर्चा कर रहे हैं और सभी लोगों को इस चर्चा में आने का मौका दे रहे हैं, बनिस्बत एक ऐसी प्रक्रिया के जिसमें केवल कुछ लोगों को विशेष निमंत्रण पर बुलाया जाए और ज़मीनी समुदाय इस पूरी चर्चा से बाहर ही रह जाएं।”
बात जब संप्रभुता की आती है, तब ज़मीनी साक्रियता ही एबोरिजिनल और टोरेस स्ट्रेट आइलैंडर लोगों की ज़िन्दगी बेहतर बनाने का मूल शक्ति स्त्रोत रही है।
कुछ एबोरिजिनल और टोरेस स्ट्रेट आइलैंडर नौजवान संगठन संधि की संकल्पना को अधिक वरीयता देते हैं, क्योंकि मतसंग्रह या संवैधानिक पहचान का अर्थ होगा उन औपनिवेशिक ढांचों के साथ वार्ता करना जिन्हें वे पहचानना ही नहीं चाहते। उनके हिसाब से, ब्रितानी न्यायप्रणाली आदिवासी लोगों की संप्रभुता और उनके प्राकृतिक रूप से खुद फैसले लेने की ताकत का विरोध करती है।
ये नौजवान संगठन इंटरनेट और सोशल मीडिया के ज़रिये राजनैतिक पृष्ठभूमि गढ़ रहे हैं। इसी के साथ ये सड़कों पर होने वाले विरोध प्रदर्शन आयोजित, प्रायोजित और उनका भी नेतृत्व कर रहे हैं ताकि बदलाव की मांग की जा सके।
संवैधानिक पहचान नकारने की इस मुहीम में अग्रणी पंक्ति में हैं वॉरियर्स ऑफ़ एबोरिजिनल रेजिस्टेंस, जिन्हें ‘वॉर’ के नाम से भी जाना जाता है।
वॉर समूह से गमिलाराय, कूमा और मुरुवारी पुरुष, बो स्पीयरिम का कहना है कि वे हमेशा से ही इस ‘टॉप-डाउन एप्रोच’ के विरुद्ध रहे हैं।
वे कहते हैं, “मुझे लगता है कि वो प्रक्रिया समुदायों से बात तो कर रही थी, पर सही तरीके से नहीं, हम एबोरिजिनल लोग न ही वो चाह रहे थे, न ही उस चर्चा को करना चाहते थे। संधि हमेशा से ही हमारा रास्ता थी और चर्चा का हिस्सा थी।”
औपनिवेशिक ढांचों के साथ वार्ता न करना वॉर की औपचारिक ठान रही है, पर श्री बो समझते हैं कि अपने निर्णय खुद लेने की क्षमता के मूल में एबोरिजिनल और टोरेस स्ट्रेट आइलैंडर लोगों का इस विषय पर भी खुद निर्णय लेना है।
चर्चा का एक विषय यह भी है कि पहचान पाने में सफलता के क्या मायने हैं।
कार्यकर्ता, वकील और एबोरिजिनल लैंड काउंसिल ऑफ़ तस्मानिया के अध्यक्ष पलावा पुरुष माइकल मैनसेल मानते हैं कि एबोरिजिनल लोगों को सांकेतिक या अर्थपूर्ण पहचान में से किसी एक का चुनाव करना होगा।
वे कहते हैं, “सांकेतिक पहचान उसे कहते हैं जो केविन रड्ड ने 2007 में स्टोलेन जनरेशंस से क्षमा मांग कर की थी।”
श्री मैनसेल बताते हैं कि वे कैसे मुकम्मल एबोरिजिनल पहचान पाना चाहते हैं।
वे कहते हैं, “यह मुश्किल प्रक्रिया नहीं है अगर फ़ेडरल संसद के सामने एक संधि रख दी जाए। फ़ेडरल संसद उस पर कानून पारित करे और एक विश्वसनीय राष्ट्रीय एबोरिजिनल प्रतिनिधि मंडल का गठन करे। यह मंडल प्राथमिकताएं स्थापित कर एबोरिजिनल समुदायों के लिए संसाधन वितरित करे जिससे एबोरिजिनल समुदाय बेहतरी के रास्ते पर चल सकें।”
वे आगे कहते हैं, “मैं यह भी चाहूंगा कि फ़ेडरल सरकार संधि समिति पर भी एक कानून पारित करे और यह समिति उस संधि का निर्माण करे। मुझे लगता है कि यह दो चीज़ें एबोरिजिनल जीवन पर एक बड़ा प्रभाव डालेंगी।”
फ़ेडरल सरकार ने तीन सलाहकार समितियों का गठन किया है ताकि एबोरिजिनल लोगों की ‘आवाज़’ को मुखरित करने की योजना तय की जा सके। ये तीन समितियां राष्ट्रीय, क्षेत्रीय और स्थानीय स्तरों पर काम करेंगी।
कंगाराकन और इवाइजा पुरुष, प्रोफ़ेसर टॉम कालमा फ़ेडरल सरकार के 'वोइस को-डिज़ाइन सीनियर एडवाइजरी ग्रुप' के सह-अध्यक्ष हैं।
वे समझाते हैं कि उनकी भूमिका फ़ेडरल सरकार को कई मॉडल प्रस्तुत करने की है, जिससे सरकार यह तय कर सके कि यह ‘आवाज़’ कैसा रूप लेगी।
वे बताते हैं, “हमारे पास संधि का ढांचा तैयार है, पर हमारा काम संधि को देखना नहीं है। हमारा काम संसद में ‘आवाज़’ पहुंचना है।”
यह रिपोर्ट पूरी हो चुकी है। फ़ेडरल सरकार का इरादा है कि अब मंत्रिमंडल इस रिपोर्ट पर विचार करे, इस पर सलाह आमंत्रित करे और कानून पारित करे— और यह सब अगले चुनाव से पहले।
प्रोफेसर कालमा का कहना है कि वे एबोरिजिनल समूह जो अपने पेश किये मॉडल पर समझौता करने को तैयार नहीं हैं उन्हें अपने सामने आया ये मौका नहीं गंवाना चाहिए।
वे कहते हैं, “हमें यह देखना होगा कि हमारे पास आज और अभी क्या है। हम क्या हासिल कर सकते हैं? वह क्या है जिसे हम बिना अपनी एबोरिजिनल और टोरेस स्ट्रेट आइलैंडर पहचान पर समझौता किये हासिल कर सकते हैं?”
“हमारे पास एक ऐसे प्रधानमंत्री हैं जो इंडिजेनस अफेयर्स मंत्री को पूर्ण समर्थन देते हैं, और चाहते हैं कि संसद में और सरकार में हमारी आवाज़ मुखरित हो। हमें चाहिए कि हम इस मौके का फायदा उठाएं।”
एबोरिजिनल और टोरेस स्ट्रेट आइलैंडर लोगों के विकास की लड़ाई तब से जारी है जब से एबोरिजिनल भूमि पर यूरोपियाई ताकतें आयीं थीं।
पहचान के अलग अलग मॉडलों पर विचार करते हुए, एबोरिजिनल और टोरेस स्ट्रेट आइलैंडर समुदाय इस बात पर एकमत हैं कि ऑस्ट्रलियाई इतिहास के एक ऐसे समय में जहां सरकार ने आदिवासी पहचान और आवाज़ को राष्ट्रीय एजेंडा पर रखा है, वे साथ मिलकर एक अर्थपूर्ण पहचान का निर्माण करेंगे।