अल दीरी परिवार को छोड़ना पड़ सकता है ऑस्ट्रेलिया

जिन बच्चों ने घर के रूप में ऑस्ट्रेलिया के अलावा कुछ देखा ही नहीं, जो लोग हमेशा से खुद को ऑस्ट्रेलियाई कहते आए हैं, उन्हें अब जान के लिए कहा जा रहा है.

Al Diri Family

अल-दीरी परिवार Source: Change.org

हरीर अलदीरी को ऑस्ट्रेलिया आने से पहले की अपनी जिंदगी के बारे में ज्यादा कुछ याद नहीं है. 12 साल की हरीर कहती हैं कि मुझे बस इतना याद है कि मां बाहर जाने मना किया करती थी क्योंकि वो डरती थी.

हरीर के लिए ऑस्ट्रेलिया ही घर है. और उनकी जुड़वां बहन मेस्क के लिए भी. चैनल 9 को दिए एक इंटरव्यू में वह कहती हैं, "मैं यहां ज्यादा खुश हूं. यह मेरे घर जैसा ज्यादा है."

लेकिन इन जुड़वां बहनों को अपने माता-पिता के साथ ऑस्ट्रेलिया छोड़ना पड़ सकता है. ऑस्ट्रेलिया छोड़ने का मतलब, अपनी पूरी जिंदगी, स्कूल, दोस्त और वो सब कुछ जो पिछले कुछ सालों में हरीरी और मेस्क ने बनाया, बसाया है, यहीं छोड़कर जाना होगा.
चैनल 9 को दिए इंटरव्यू में उनकी मां रीम ऐल्वुश कहती हैं, "मैं यहां पिछले सात साल से हूं. मैंने इस देश में कभी कुछ गलत नहीं किया. क्यों मुझे एक मौका और नहीं मिल सकता? मेरे लिए नहीं तो मेरी बेटियों के लिए."

रीम और उनका परिवार 2011 में जॉर्डन से ऑस्ट्रेलिया आया था. रीम की मां इराक से शरणार्थी के तौर पर ऑस्ट्रेलिया आई थीं और बाद में वह ऑस्ट्रेलियाई नागरिक हो गईं. उनसे मिलने अलदीरी परिवार ऑस्ट्रेलिया आया और फिर उन्होंने प्रोटेक्शन वीसा की अर्जी दी, ताकि वे यहीं रह सकें.

अलदीरी परिवार ने सिडनी के दक्षिण-पश्चिम में अपना घर बसाया. बच्चे स्कूल जाने लगे. रीम और उनके पति नौकरी करने लगे. और रीम की मां का ध्यान भी रखने लगे. सात साल बीत गए. इस बीच वीसा की अर्जियां खारिज होती रहीं. वे लोग दोबारा अप्लाई करते रहे. पर अब स्थिति आ गई है कि लगता है, उन्हें ऑस्ट्रेलिया छोड़ना होगा.
इमिग्रेशन डिपार्टमेंट का कहना है कि इस परिवार के मामले को पूरी तवज्जो के साथ देखा, पढ़ा गया है. पहले डिपार्टमेंट ने, फिर रिफ्यूजी रिव्यू ट्राईब्यूनल ने और उसके बाद असिस्टेंट मिनिस्टर ने भी इस मामले को देखा है.

रीम बताती हैं कि उनका परिवार कोई वेलफेयर पेमेंट नहीं लेता बल्कि अपनी विकलांग मां का ख्याल रखकर सरकार का कुछ पैसा बचाता ही है.
इस परिवार ने एक ऑनलाइन पिटिशन भी शुरू की है जिसमें परिवार का साथ देने की अपील की गई है. इस पर 23 हजार से ज्यादा लोगों ने दस्तखत किए हैं.

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By विवेक आसरी

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