अविष्कारक का दावा
हम इसे अविष्कारक का दावा कह रहे हैं क्योंकि इस मामले का सरकारी पक्ष हमारे पास मौजूद नहीं है लेकिन इन दावों के कई साक्ष्य यहां मौजूद हैं . इस कहानी को आप तक पहुंचाने से पहले हमने तहक़ीकात की और ये बात पुष्ट की कि क्या अविष्कारक के पेटेंट पाने का दावा सही है या नहीं साथ ही उन्होंने इस केस संबंधित और कागज़ात भी हमें मुहैया कराए हैं। हम बात कर रहे हैं एक ऐसी सीरिंज की जो एक इस्तेमाल के बाद खुद ही नष्ट हो जाती है. भोपाल के रहने वाले शैलेंद्र बीरानी इसके अविष्कारक हैं वे कहते हैं

Source: Shailendra, Gaurav Vaishnava
“जो नॉर्मल सीरिंज काम में आती है उससे कई बार इंजैक्शन लगाया जा सकता है. ये अविष्कार उसका ऑटो डिस्पोजेबल रूप है. यानी कि एक बार इस्तेमाल होने के बाद वो अपने आप टूट जाए”
कम हो सकता है सीरिंज से होने वाला संक्रमण
शैलेंद्र का कहना है कि उनकी बनाई सीरिंज खून के संक्रमण से होने वाली कई बीमारियों से लोगों को बचाने में कामयाब हो सकती है. हमने शैलेंद्र से ही जानने की कोशिश की कि आखिर क्यों वो अपने अविष्कार को इतना महत्वपूर्ण मानते हैं. वो कहते हैं
“गलती से कई बार ऐसा होता है कि एक सीरिंज का इस्तेमाल एक से ज्यादा बार हो जाता है जिससे संक्रमण बढ़ता है लेकिन एक इस्तेमाल के बाद अपने आप खराब होने वाली इस सीरिंज से इसकी संभावना खत्म हो जाएगी” Image
पूरा न हो सका रिकॉर्ड दर्ज कराने का सपना
शैलेंद्र अपनी सफलता पर खुश थे.. साल 2006 में महज़ 24 साल की उम्र में वो इस सीरिंज का पेटेंट हासिल कर चुके थे. वो मानते थे कि इतनी कम उम्र में बिना किसी मदद के पेटेंट पाना पूरे विश्व में एक बड़ी उपलब्धि है. उन्होंने इसे लिमका बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड में दर्ज कराने की कोशिश की. लेकिन ऐसा हो न सका.. क्यों.. इसका कारण आप जानेंगे तो शायद इसका आपको भी अफसोस होगा. शैलेंद्र बीरानी बताते हैं कि
“लिमका बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड के अधिकारियों ने भारत सरकार से संपर्क किया, ये जानने के लिए कि पेटेंट हासिल करने के वक्त मेरी उम्र क्या थी, लेकिन दुर्भाग्यवश कंट्रोलर जनरल ऑफ पेटेंट के ऑनलाइन रिकॉर्ड में डेट ऑफ बर्थ का वो कॉलम ही नहीं था जिससे कि मेरी और बाकी पेटेंट हासिल करने वाले लोगों की उम्र का पता चल पाता”
शैलेंद्र की भारत के राष्ट्रपति से स्पेशल सेल की मांग
शैलेंद्र के लिए ये बात निराश करने वाली थी लेकिन उनकी असली मंज़िल लिमका बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड नहीं थी, वो चाहते थे कि उनका अविष्कार देश ही नहीं दुनिया के काम आए. उन्होंने एसबीएस को बताया कि उनके अविष्कार का फायदा देश ही नहीं दुनिया तक पहुंचे और इसके लिए उन्होंने राष्ट्रपति भवन के अन्तर्गत एक स्पेशल सेल की मांग की जिसके बाद ये तय हो जाता कि इस सीरिंज से संबधित सारे कामों में सरकारी विभाग भी शामिल हो पाते और इसका आम लोगों तक पहुंचना और आसान हो जाता. लेकिन शैलेंद्र के मुताबिक ये मामला पिछले 7 सालों से राष्ट्रपति के फैसले की बाट जोह रहा है।
हालांकि शैलेंद्र को अब इस पर किसी फैसले की उम्मीद नहीं है. लेकिन वो मानते हैं कि अगर ऐसा हो जाए तो समाज का बड़ा फायदा हो सकता हो।