38 साल के सुजीत नायर को अस्पताल में भर्ती होना पड़ता है. वहां उनकी बोन मैरो बायोप्सी होती है. डॉक्टर उनकी हिपबोन में एक सुई डालते हैं और बोनमैरो का सैंपल लेते हैं, ये देखने के लिए कि उनका लूकीमिया अब किस स्तर पर है.
सुजीत की पत्नी अंजू सुजीत बताती हैं कि वे दिन बहुत मुश्किल होते हैं. वह कहती हैं, "कई दिन तक सुजीत अपने आप चल नहीं पाते हैं. उन्हें मदद की और ज्यादा देखभाल की जरूरत होती है. और तब इन्फेक्शन का खतरा बहुत बढ़ जाता है."

Sujith Nayar in hospital during one of the chemotherapy sessions Source: Supplied
पिछले तीन साल से सुजीत और उनका परिवार यहीं जिंदगी जी रहा है. ब्रिसबेन स्थित सुजीत एक आईटी इंजीनियर हैं. उन्हें तीन साल पहले फिलाडेल्फिया क्रोमोसोम-पॉजिटिव एक्यूट लिंफोब्लास्टिक लूकीमिया हुआ. यह एक किस्म कैंसर है जो बहुत कम लोगों को होता है.
अंजू बताती हैं कि उन पर दवाओं का असर हो रहा है लेकिन हालत कभी भी बिगड़ सकती है. वह कहती हैं, "डॉक्टर कहते हैं कि बोन मैरो रीप्लेसमेंट ही एकमात्र इलाज है. उन्हें एक दानकर्ता चाहिए. ऐसा दानकर्ता जो मैचिंग हो."
दुनियाभर में फैले अपने परिजनों और दोस्तों की मदद से अंजू एक ऐसा दानकर्ता खोजने की कोशिश कर रही हैं. लेकिन तीन साल से उन्हें बस नाकामी ही हाथ लग रही है. ऐसा कोई दानकर्ता नहीं मिला है जिसका टिशू सुजीत से मैच करता हो.
"सुजीत का टिशू बहुत दुर्लभ है. इसका मैच मिलना बहुत मुश्किल हो गया है."
सुजीत का यह मुश्किल वक्त सीने में दर्द के साथ शुरू हुआ था. पर्थ में जन्मे सुजीत को 2015 में सीने में कुछ दर्द हुआ था. तब वह डॉक्टर के पास गए तो एक खौफनाक सच का पता चला. उन्हें एक ऐसा लूकीमिया हो गया था जिसका नाम तक नहीं सुना था. उनकी रक्त-कोशिकाओं में 86 फीसदी में कैंसर फैल चुका था.
तब से सुजीत की कीमोथेरपी के छह दौर हो चुके हैं. हर बार वह कई महीनों तक बिस्तर पर रहते हैं. हालांकि उनके शरीर पर दवाओं का असर हो रहा है जिससे उनकी उम्मीदें बढ़ी हैं. लेकिन बोन मैरो रिप्लेसमेंट चाहिए. अब उनके दोस्त एक और अभियान शुरू कर रहे हैं.

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उनकी एक दोस्त सुधा नायर बताती हैं, "क्वीन्सलैंड की मलयाली असोसिएशन ऑस्ट्रेलियन बोन मैरो डोनेशन रजिस्ट्री के साथ मिलकर अभियान चला रहे हैं."
ब्रिसबेन के ऐनरली में 22 सितंबर को सेंट फिलिप्स हॉल में यह अभियान चलाया जाएगा.
सुधा नायर कहती हैं, "सुजीत के लिए दानकर्ता खोजना भूसे के ढेर में सुई खोजने जैसा है."
एक समस्या यह है कि भारतीय मूल के लोग बोन मैरो दान के लिए बहुत कम रजिस्टर करते हैं. अंजू बताती हैं, "लोग बोन मैरो डोनेशन की प्रक्रिया के बारे में जानते ही नहीं हैं. शायद इसीलिए लोग बहुत कम रजिस्टर करते हैं. सुजीत के लिए अगर कोई दानकर्ता मिल जाता है तो उसे अपनी बोन मैरो नहीं देनी होगी. यह बस खून देने जैसा होगा. इस प्रक्रिया को पैरीफीरल ब्लड स्टेम सेल डोनेशन कहते हैं."
इस प्रक्रिया में तीन-चार घंटे लगते हैं. आमतौर पर रक्त में प्रवाहित स्टेम सेल्स की संख्या कम होती है. उन्हें बढ़ाने के लिए ग्रैनुलोकाईट कॉलोनी स्टिम्युलेटिंग फैक्टर नाम का एक पदार्थ इंजेक्शन के जरिए चार दिन तक त्वचा के भीतर डाला जाता है. फिर पांचवें दिन रक्तदान की तरह है कि खून लिया जाता है और उसमें से स्टेम सेल अलग करके बाकी खून वापस डाल दिया जाता है.

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