मुसीबत की इस घड़ी में घरेलू हिंसा के शिकार लोगों और बुज़ुर्गों के लिए मदद

Family Violence

On average a woman in Australia dies every nine days at the hands of their current or former partner. Source: AAP

हरिंदर कौर मानती हैं कि लॉकडाउन की स्थिति में जिन घरों में पहले से ही घरेलू हिंसा का तनाव है, वहां हालात और तनावपूर्ण हो सकते हैं. साथ ही बुज़ुर्गों के लिए भी खतरा बहुत ज्यादा है क्योंकि उन्हें उनकी ज़रूरतों का सामान देने वाला कोई नहीं होगा. ऐसे में उनकी संस्था लोगों को मानसिक और ज़रूरतों के मुताबिक मदद मुहैया कराने के लिए तैयारी कर रही है.


कोविड19 की वजह से दुनिया भर में शहर कस्बे, राज्य यहां तक कि पूरे देश तक बंद हो रहे हैं. जहां नहीं हो रहे हैं वहां भी क्रिया-कलापों को सीमित किया जा रहा है.

हालांकि ये कोशिश है लोगों को इस खतरनाक वायरस से बचाने की लेकिन इन कोशिशों का एक दूसरा पहलू भी है. और ये पहलू उन लोगों से जुड़ा है जिन्होंने कोविड-19 से बचने के लिए खुद को घरों में कैद कर लिया है.

बात यहीं तक नहीं है. मुसीबत ये है कि ये ऐसे लोग हैं जो बुज़ुर्ग हैं और इस वायरस के संक्रमण के लिहाज़ से सबसे संवेदनशील हैं. वो बाहर नहीं निकल सकते और घर में उनके ज़रूरत का सामान पहुंचाने वाला कोई नहीं है.

एक और पहलू है घरेलू हिंसा से जुड़ा हुआ.

जिन परिवारों में घरेलू हिंसा का पहले से ही तनाव है वो इस समय ज्यादा तनाव ग्रस्त हैं.

घरेलू हिंसा से जुड़े मामलों में सहायता मुहैया कराने वाली एक संस्था हरमन फाउंडेशन की संस्थापक हरिंदर कौर ने हमें बताया कि उनके पास कुछ शिकायतें आई हैं जिसमें कि लोग ज्यादा तनाव महसूस कर रहे हैं.

लेकिन वो कहती हैं कि ये शुरूआती दौर है जबकि लोग लॉकडाउन में जा रहे हैं.

धीरे-धीरे ये फर्क पड़ेगा कि तनाव और झगड़े की स्थिति में लोग तनाव कम करने के लिए घरों से बाहर निकल जाया करते थे. लेकिन अब ऐसा बहुत संभव नहीं होगा.

हरमन फाउंडेशन में एक स्वयंसेवी के तौर पर काम करने वाली पिंकी भाटिया संस्था की मार्केटिंग विभाग की प्रमुख हैं.

वो कहती हैं कि घरेलू हिंसा के मामलों में पहले से ही वो एक प्रक्रिया का पालन करते हैं कि अगर हिंसा से पीड़ित कोई शख्स का घर में रहना मुश्किल है और उसकी आमदनी भी नहीं है तो वो उन्हें रहने के लिए जगह भी मुहैया करते हैं.

कोविड 19 को लेकर लोग संशय में हैं, डरे हुए हैं और जो लोग अकेले घरों में कैद हैं ज़ाहिर तौर पर उनके अंदर इसके लेकर बहुत सारे सवाल होंगे जो उन्हें अशांत कर सकते हैं.

उनके पास खुद की कई ऐसी परेशानियां हो सकती हैं जो उन्हें मानसिक तौर पर विचलित कर सकती हैं.

इस परेशानी में लोगों की मदद के लिए भी संस्था ने तैयारियां की हैं.

हरिंदर कौर कहती हैं कि उनका मक़सद लोगों के मन के तनाव को कम करना है.

पिंकी बताती हैं इसके लिए उनकी संस्था से कुछ नए लोग जुड़े हैं और साथ में कुछ विशेषज्ञ भी जो परेशान लोगों को मदद मुहैया करा सकते हैं. वो कहती हैं,"हमारे साथ कई विशेषज्ञ जुड़े हैं जो कि मानसिक तनाव से संबंधित सलाह दे सकते हैं. इसके अलावा जिसके पास बात करने के लिए कोई नहीं हमारे वॉलंटियर उनकी बात सुन सकते हैं."

इस काम के लिए संस्था नए स्वयंसेवकों को भी अपने साथ जोड़ रही है. हरिंदर कौर कहती हैं कि ऑस्ट्रेलिया में हर किसी सामाजिक काम की रीढ़ स्वयंसेवी ही हैं.

संस्था का कहना है कि वो ऐसे लोगों के लिए भी कुछ हैम्पर तैयार कर रहे हैं जो कि ज़रूरतमंद है लोग हैं और घरों से बाहर नहीं निकल सकते हैं.

पिंकी भाटिया बताती हैं कि इस हैम्पर में न केवल खाने पीने का सामान बल्कि महिलाओं के लिए सैनिटरी का सामान भी होगा.

वो कहती हैं कि लोगों का कॉल आने पर उनकी ज़रूरत के मुताबिक भी सामान दिये जाने की कोशिश की जाएगी. 

हालांकि हरिंदर कौर अपने स्वयंसेवियों के स्वास्थ्य के लिए भी चिंतित दिखाई देती हैं. वो कहती हैं कि इसके लिए सुरक्षित तरीके अपनाए जाएंगे.

हरमन फाउंडेशन से ऑस्ट्रेलिया भर से संपर्क करने के लिए 1800 116 675 पर कॉल किया जा सकता है. हालांकि खाने और ज़रूरत का सामान केवल पश्चिमी सिडनी में ही मुहैया कराए जाएंगे.

f you have experienced sexual assault, domestic or family violence, call 1800 RESPECT on 1800 737 732.

In an emergency, call 000.

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