कलगूरली, वेस्टर्न ऑस्ट्रेलिया में पर्थ से करीब 600 किलोमीटर की दूरी पर उत्तर-पूर्व में एक छोटा सा कस्बा है. बताया जाता है कि साल 1893 में यहां कुछ लोगों को सोने की खदानों के निशान मिले थे इसके बाद से ही सैकड़ों लोगों ने यहांका रुख किया.
साल 2016 की जनगणना में कलगूरली की जनसंख्या 29,873 थी. और तब यहां पर भारतीय पृष्ठ भूमि के महज़ 1.२ फीसदी यानी 436 लोग थे.
इस कस्बे में रहने वाले सचिन खेरे स्वास्थ्य विभाग में रीज़नल कोऑर्डिनेटर हैं वो कहते हैं कि भारतीय समुदाय के लोग कलगूरली के उदय से ही इसके साथ जुड़े हैं.
वो कहते हैं, “जहां तक मुझे इतिहास की जानकारी है शुरूआती दौर में यहां अफगानिस्तान और बलूचिस्तान जो कि तब भारत में था, वहां से ऊंट लाए गए थे और उनके साथ कई लोग भी आए थे जो कि कलगूरली में सामान लाने ले जाने का काम करते थे. उस दौर में यहां खाना और पानी भी पर्थ से आया करता था.”
लेकिन वर्तमान में भारतीय समुदाय के लोग यहां पर किस तरह के कामों से जुड़े हैं इस बारे में एक माइनिंग कंपनी में फिज़ियो, सिल्पा दसारिराजू कहती हैं कि यहां भारतीय समुदाय के लोग आम तौर पर माइनिंग या इससे जुड़े व्यवसायों में काम करते हैं.

A train passes through the gold mining town of Boulder, later part of Kalgoorlie-Boulder, in Western Australia, circa 1900 Source: Sean Sexton/Getty Images
वो बताती हैं “यहां भारतीय समुदाय के लोग माइनिंग इंजीनियर, इलैक्ट्रिक इंजीनियर हैं और जैसे में फिज़ियो हूं और मैं एक माइनिंग कंपनी के लिए काम करती हूं, यहां कई और डॉक्टर भी हैं जो कि माइनिंग में लगने वाली चोटों का निराकरण करते हैं. तो ऐसे में माइनिंग के आस-पास ही यहां कई तरह की नौकरियां हैं”
वो बताती हैं कि ये देखना भी रोचक है कि यहां अब कई भारतीय छात्र कर्टिन विश्वविद्यालय के कैंपस में माइनिंग की पढ़ाई करने पहुंच रहे हैं और इसके बाद उन्हें यहीं रोजगार भी मिल जाता है.

Golden Mile, Western Australia, 1928. Area of Kalgoorlie often referred to as the Golden Mile because of the concentration of gold mines. Cigarette card produce Source: The Print Collector/Print Collector/Getty Images
सिल्पा दक्षिण भारत से संबंध रखती हैं वो बताती हैं कि जब वो करीब 9 साल पहले कलगूरली आईं थीं तो महज़ 6 महीने के लिए आईं थीं लेकिन कलगूरली ने उन्हें ऐसा अपनाया कि वो यहीं की होकर रह गईं.
वो कहती हैं कि ये छोटा सा कस्बा उन्हें रोज मर्रा की ज़िंदगी में काफी स्वतंत्रता देता है, जैसे शहर के अंदर यात्रा में कम समय, जिसे आप परिवार के साथ बांट सकते हैं.
सचिन कहते हैं कि कलगूरली में भारत के विभिन्न हिस्सों के लोग रहते हैं और छोटे समुदाय का फायदा ये है कि हर कोई हर किसी को जानता है. और सभी लोग तीज-त्यौहारों में साथ होते हैं.
उनके चेहरे पर तब खुशी देखी जा सकती है जब वो कहते हैं कि कलगूरली के अकेले सचिन वो ही हैं.
वो कहते हैं, “ज्यादातर लोग पंजाबी हैं, जब कोई पंजाबी आयोजन होता है तो करीब 50-60 लोग इकट्ठा हो जाते हैं. 8-10 गुजराती परिवार हैं, कुछ लोग महाराष्ट्र से हैं और कई लोग दक्षिण भारत से भी हैं”

Indian community celebrating festivals in Kalgoorlie Source: Ravi Bagga
हालांकि सचिन आज तक कलगूरली किसी भी शादी जैसे समारोहों में शामिल नहीं हुए. लेकिन वो बताते हैं कि लोग जन्मदिन जैसे समारोह भी समुदाय के साथ मिलकर करते हैं.
कलगूरली के लोगों से बात करके पता चलता है कि वो अपने वर्तमान से संतुष्ट हैं लेकिन क्या वो यहां पर अपने और अपनी परिवार के भविष्य के प्रति भी उतने ही आश्वस्त हैं?
सिल्पा कहती हैं कि वर्तमान में यहां सभी तरह की सुविधाएं हैं. यहां पर कुछ सार्वजनिक प्राथमिक विद्यालय हैं, साथ ही दो निजी प्राथमिक विद्यालयों का विकल्प भी हैं.
ये ही नहीं यहां एक सार्वजनिक हाई स्कूल, और दो निजी हाई स्कूल भी हैं. सिल्पा मानती हैं कि इंटरनेट के इस दौर में कहीं से भी कुछ दूर नहीं है, वो कहती हैं कि अगर कलगूरली के बच्चों को मैथ्स ओलंपियाड जैसे कार्यक्रमों में भी भाग लेना है तो वो यहीं से ये कर सकते हैं. वो मानती हैं कि ऐसा कतई नहीं है कि जो सुविधा पर्थ के बच्चों को मिल रही है वो कलगूरली के बच्चे नहीं पा सकते.

The Super Pit, Australia's largest open cast gold mine, Kalgoorlie, Western Australia Source: Getty Images/Moment Mobile/Nigel Killeen
सचिन कहते हैं,”अगर आप माइनिंग में नौकरी करते हैं तो कलगूरली आपके लिए सबसे अच्छी जगह है. यहां न केवल आपके लिए माइनिंग की नौकरियां हैं बल्कि एक सुकून भरी ज़िंदगी भी है.”
वो आगे कहते हैं,”मैं सुबह साढ़े आठ बजे से शाम साढ़े चार बजे तक तक ऑफिस में रहता हूं, और चार बजकर पैंतीस मिनट पर में घर पर होता हूं. इसके बाद मैं पूरा समय परिवार के साथ बिता सकता हूं जबकि सिडनी और मैलबर्न जैसे शहरों में ये संभव नहीं है.”
हालांकि सचिन कहते हैं कि कुछ लोग यहां अपने परिवार को इस तरह से नहीं देखते हैं.

Gold mine workers at Kalgoorlie Source: Ravi Bagga
और कई लोग बच्चों की पढ़ाई के लिए पर्थ चले जाते हैं. वो कहते हैं कि यहां पर सेवाएं बहुत प्रोफेशनल नहीं हैं.
सचिन भी इस वक्त कलगूरली में अपने वर्तमान से बेहद संतुष्ट और खुश हैं लेकिन वो मानते हैं किकुछ समय बाद वो भी इस खूबसूरत जगह को अपने परिवार के भविष्य के लिए छोड़ सकते हैं.