हमने अक्सर बड़े-बुजुर्गों को कहते सुना है - नाम में क्या रखा है? आदमी को अपने काम से पहचाना जाना चहीयहे. पर कई बार हमारा नाम ही हमारी पहचान औरकुछ खास समुदाय और धर्म के लोगों के लिये अवसरों को रोकने का कारण भी बन जानता है!
शोध बताता है की नाम के आधार पर भेदभाव करने के कई मामलों के सामने आने के बाद यूनाइटेड किंगडम और कनाडा ‘नेम ब्लाइंड रेसुमै’ की तरफ कदम बढ़ा रहें हैं.
हमने इसी विषय पर बात की Usman W. Chohan से जो की UNSW (Canberra) में इकॉनमी पालिसी रिफॉर्म्सपरशोध कर रहें हैं तथा प्राइवेट, पब्लिक और यूनिवर्सिटी सेक्टर में पॉलिसी निर्धारित करने के विशेषज्ञ भी हैं.