दहेज़ की बात करें तो भारत में ये कुप्रथा किसी घातक बीमारी की तरह समाज को जकड़े हुए है. हालांकि लोगों में जागरुकता बढ़ रही है, कानून का सहारा मिल रहा है, कुछ युवा भी दहेज के ख़िलाफ आगे आ रहें हैं लेकिन सवाल है कि कितने. ये सवाल इसलिए क्योंकि दहेज का ये ज़हर भारत से हज़ारों मील दूर ऑस्ट्रेलिया तक देखने को मिल रहा है. घरेलू हिंसा के कई मामले सामने आए हैं जिसके पीछे दहेज सबसे बड़ा कारण है.
घरेलू हिंसा और दहेज के ख़िलाफ यहां यानी ऑस्ट्रेलिया में क्या किया जा सकता है कि इसके लिए गुरुवार को लेबर पार्टी के कुछ नेताओं द्वारा एक मीटिंग का आयोजन किया गया, ज़ाहिर तौर पर इस मीटिंग में ऑस्ट्रेलिया में भारतीय समुदाय से जुड़े लोगों और ख़ास तौर पर दहेज़ और घरेलू हिंसा के निस्तारण के लिए काम कर रहें संगठनों को आमंत्रित किया गया था. लोगों से संवाद स्थापित करने वाले नेताओं में, लेबर पार्टी में “शेडो मिनिस्टर फॉर कम्युनिकेशन” और “एमपी” मिचेल रोलेंड के साथ वेस्टर्न ऑस्ट्रेलिया से सीनेटर और “शेडो मिनिस्टर फॉर यूनिवर्सिटीज़ एंड इक्वेलिटी” लुईस प्रैट के साथ ब्रूस से एमपी जूलियन हिल मौजूद थे.
मीटिंग का हाल

Source: Gaurav Vaishnava
करीब एक घंटे चली इस मीटिंग में कई सारे मुद्दे आए, जिनमें भारतीय समुदाय के लोगों ने इन नेताओं को दहेज़ और उससे जुड़े सामाजिक परेशानियों के बारे में बताया. ये बताया गया कि कैसे एक सौदे की तरह दहेज का लेन-देन किया जाता है. कई केस के बारे में भी चर्चा की गई और बताया गया कि दहेज के मामले में किस हद तक एक महिला को प्रताड़ित किया जा सकता है. इस मामले में हरमन फाउंडेशन की डायरेक्टर हरिंदर कौर कहती हैं कि केवल मीटिंग से कुछ नहीं होगा, नेताओं को इसके लिए घरेलू हिंसा पर काम कर रहे संगठनों के साथ मिलकर काम करना होगा.
उठा दहेज से संबंधित कानूनों के गलत इस्तेमाल का मुद्दा
एक ओर दहेज के मामलों में महिलाओं के उत्पीड़न की बात की गई दूसरी ओर टरबन्स ऑस्ट्रेलिया के अध्यक्ष अमर सिंह सहित कुछ और लोगों ने कानूनों के बेजा इस्तेमाल और घरेलू हिंसा में पुरुषों की शिकायतों को तरजीह न दिए जाने का मुद्दा उठाया इन लोगों का कहना था कि पीड़ित महिला हो या पुरुष कानून और मदद दोनों के लिए समान होनी चाहिए.
मीटिंग के बाद एक प्रेस कॉन्फ्रेंस को संबोधित करते हुए मिसेल रोलैंड ने कहा ऑस्ट्रेलिया में इस तरह की हिंसा की इजाज़त नहीं दी सकती, उन्होंने कहा कि
"इस तरह के मामलों में केवल शारीरिक ही नहीं मानसिक हिंसा भी होती है जिसे समझना बहुत ज़रूरी है. उन्होंने कहा कि इस मामले में चल रही सीनेट इनक्वायरी एक अच्छा कदम है"
वहीं कानूनी और संवैधानिक मामलों की कमेटी की अध्यक्ष (Chair of Legal and Constitutional Affairs References Committee) लुईस प्रैट ने कहा कि दहेज जैसे मामलों से निपटने के लिए अभी ऑस्ट्रेलिया में व्यापक कानून नहीं हैं और इसके लिए कानूनों में परिवर्तन की जरूरत होगी लेकिन साथ ही सामाजिक तौर पर काम करने वाली संस्थाओं को भी पीड़ितों की मदद के लिए सामने आना होगा.
एमपी जूलियन ने भी हिल ने भी दोनों नेताओं की बात पर सहमति जताते हुए कहा कि
ऑस्ट्रेलिया जैसे देश में अगर ऐसा हो रहा तो कुछ लोगों को ये बताने की ज़रूरत है कि महिलाएं उनकी संपत्ति नहीं हैं.
उधर एक अहम मसला घरेलू हिंसा के मामले में पुलिस की असंवेदनशीलता का भी उठा कुछ केस का हवाला देते हुए बताया गया कि पुलिस मानसिक प्रताड़ना की शिकायतों को संजीदा तरीके से नहीं लेती. और ऐसे में मामले और हिंसक होते जाते हैं.