भारत में हिब्रू एक ही टीचर है, वो भी मुसलमान

Dr. Khursheed Alam of JNU

Dr. Khursheed Alam of JNU Source: Supplied

संयुक्त राष्ट्र में 31 ऐसे सदस्य देश हैं जिन्होंने अब तक भी इस्राएल को मान्यता नहीं दी है. यानी वे इस्राएल को मुल्क मानते ही नहीं हैं. इनमें 21 तो अरब लीग के सदस्य देश हैं जैसे सऊदी अरब है, ओमान है, इराक, कुवैत, सीरिया, यूएई बहरीन. इसके अलावा अफगानिस्तान है, पाकिस्तान है बांग्लादेश है ईरान और इंडोनेशिया भी हैं, जो इस्राएल को मुल्क नहीं मानते. चूंकि ये ज्यादातर देश मुस्लिम बहुल हैं, तो यह एक आम धारणा बन गई है कि दुनिया के मुसलमान इस्राएल के दुश्मन हैं. भारत में इस्राएल का विरोध करने वाले मुसलमान भी खूब हैं. लेकिन इस्राएल की मादरी जबान हिब्रू पढ़ाने वाला भारत में एक ही टीचर है और वो मुसलमान है. जेएनयू में पढ़ाने वाले डॉ. खुर्शीद आलम भारत के एकमात्र हिब्रू टीचर हैं. और इस बात पर दुनिया हैरान है. डॉ. आलम क्या कहते है?


“मुझे ये बात समझ नहीं आती कि इसमें ताज्जुब होने की क्या बात है. जब हम मुसलमान होकर हिंदी बोल सकते हैं, मैंने तो स्कूल में संस्कृत भी पढ़ी है. उसमें कोई दिक्कत नहीं. तो, चीजों को अलग-अलग देखना चाहिए. कोई मजहब, और कम से कम इस्लाम तो मना नहीं करता कि आप हिब्रू ना सीखे, फ्रेंच ना सीखें. दुनिया में बहुत सी जबानें हैं. उनमें एक जबान हिब्रू भी है. हां, अगर आप इसे राजनीतिक कोण से देखते हैं कि इस्राएल और फिलीस्तीन में जो राजनीतिक समस्या है, उसे आप खींचकर धार्मिक बना दें, तो फिर बहुत सारे मुद्दे हो सकते हैं.”

लेकिन ये ताज्जुब की बात तो है. अगर ये ताज्बुब की बात ना होती, वह भारत में अकेले इंसान ना होते हिब्रू पढ़ाने वाले. लेकिन वह इस बात को दूसरी तरह से देखते हैं. आलम कहते हैं, “हिंदुस्तान के मामले में तो गैर-मुस्लिम भी नहीं है दूसरा. मेरी समझ में तो खुला दिमाग  होना चाहिए. अहम बात ये है कि हिब्रू सीखने का धार्मकि कोण भी है. क्योंकि इस्लामिक इतिहास तो यहूदी इतिहास से जुड़ता है. दोनों का इतिहास तो एक ही है. वे सोलोमन कहते हैं हम सुलेमान कहते हैं. वे डेविड कहते हैं, हम दाऊद कहते हैं, वे अब्राहम कहते हैं, हम इब्राहिम कहते हैं. इतिहास वही है, कहीं कहीं उसकी व्याख्याएं बदल गई हैं बस. इस्लामिक विश्वास में जो चार किताबें अल्लाह ने भेजी हैं, उनमें बाइबिल भी है, हिब्रू तोरा भी है. तोरा जो यहूदियों की धार्मिक किताब है, वो तो हिब्रू में है. तो जब अल्लाह हिब्रू में कम्यूनिकेट कर रहा है, तो एक मुसलमान को हिब्रू में कम्यूनिकेट करने में क्या समस्या है.”
Dr. Khursheed Alam, JNU
Source: Supplied
डॉ. आलम ने हिब्रू सीखी पश्चिम एशिया में अपनी दिलचस्पी के कारण. वह बताते हैं, “दरअसल, जेएनयू में मैं वेस्ट एशियन स्टडीज का स्टूडेंट था. तो वेस्ट एशिया में में कोई भी टॉपिक लीजिए, इस्राएल घूम फिर कर आ ही जाता है. अरब समस्या लीजिए, तेल का मुद्दा लीजिए, सामाजिक या आर्थिक समस्याएं लीजिए, इस्राएल आ ही जाता है. तो मेरी रूचि बढ़ी कि क्यों नहीं हम खुद समझें कि क्या है असलियत. तो मैंने अरबी सीखी, अरबों को समझने के लिए. और हिब्रू सीखी कि इस्राएल की क्या पोजीशन है, उसे सीधे समझा जा सके.”

आलम ने इस्राएल में रहकर हिब्रू पढ़ी. वह यहूदियों के बीच रहे और उनके साथ खूब चर्चाएं कीं. वह कहते हैं, “इस्राएलियों के लिए, अपने ज्यादातर दोस्तों के लिए मैं पहला गैर-अरबी मुसलमान था जिससे उनकी सीधी मुलाकात हुई. क्योंकि बाहर जाते हैं तो घूम फिर कर आ जाते हैं. और देश में उनकी मुलाकात फलीस्तीनियों से ही होती है, या अरब होते हैं. तो गैर अरब मुसलमान में उनकी खासी दिलचस्पी थी. तो वे खूब बातें करते थे. क्योंकि मैं थर्ड पार्टी था. तो उनके साथ बातें काफी अच्छी रहीं.”

डॉ. आलम कहते हैं कि इस्राएल और फलीस्तीन का मसला बहुत पेचीदा हो गया है क्योंकि इसमें बहुत सारे पक्ष खड़े हो गए हैं लेकिन भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की इस्राएल यात्रा को वह बहुत अच्छा मानते हैं. वह कहते हैं कि भारत का मुसलमान होने के नाते मैं ये सोच रहा हूं कि देश तरक्की करेगा तो हम तरक्की करेंगे. उन्होंने कहा, “इस्राएल एक अहम देश है. बहुत सारे सेक्टर्स हैं जहां हमें उसकी जरूरत है. एक जमाने था कि अरब देशों की बहुत जरूरत थी हमें. अब वो पुराना अरब भी नहीं है. और हमारी जरूरतें भी बदल गई हैं. अपनी उन जरूरतों के लिए जैसे हम अमेरिका से संबंध बनाते हैं, रूस से संबंध बनाते हैं, वैसे ही इस्राएल से भी बनाएं. इसमें दिक्कत क्या है?”

डॉ. आलम कहते हैं कि यही सही दिशा है और फलीस्तीन के मामले में तो हमारी कोई बहुत बड़ी भूमिका रही नहीं है इसिलए मोदी की इस्राएल यात्रा को इसी तरह से देखा जाना चाहिए.


Share
Download our apps
SBS Audio
SBS On Demand

Listen to our podcasts
Independent news and stories connecting you to life in Australia and Hindi-speaking Australians.
Ease into the English language and Australian culture. We make learning English convenient, fun and practical.
Get the latest with our exclusive in-language podcasts on your favourite podcast apps.

Watch on SBS
SBS Hindi News

SBS Hindi News

Watch it onDemand