नेहा कुमार ने अपनी मां को ब्रेस्ट कैंसर का पता चलने के दो साल बाद ही खो दिया।
"मैं वह फोन कॉल कभी नहीं भूल सकती, जब उन्होंने कहा, ‘मैं नहा रही थी, तभी छाती पर बने एक घाव अचानक से खून बहाने लगा।’"
"उन्हें 'ब्रेस्ट' शब्द बोलने में भी झिझक होती थी," नेहा ने याद किया।
नेहा का कहना है कि उनकी मां रेनू ने शुरुआती लक्षणों को नज़रअंदाज़ किया, और जब तक ध्यान दिया, तब तक बहुत देर हो चुकी थी।
खासकर दक्षिण एशियाई समुदायों में, हम अपने शरीर के बारे में, और विशेष रूप से निजी अंगों के बारे में बात ही नहीं करते।
"उन्होंने कभी नहीं बताया कि वहां कोई घाव था, न ही कभी किसी गांठ का ज़िक्र किया। मुझे नहीं लगता कि उन्हें कभी यह सिखाया गया था कि ब्रेस्ट की खुद से जांच कैसे की जाती है।"
ब्रेस्ट और सर्वाइकल स्क्रीनिंग को लेकर सांस्कृतिक सोच के साथ-साथ भाषाई सीमाएं, पहुंच और डर भी बड़ी बाधाएं हैं।
जनरल प्रैक्टिशनर डॉ. मरियम चालन मानती हैं कि रोकथाम से जुड़ी देखभाल के लिए CALD (सांस्कृतिक और भाषाई रूप से विविध) पृष्ठभूमि की महिलाओं को प्रेरित करने में जागरुकता और दृश्यता बेहद ज़रूरी है।
"ज़रूरत है कि हम इस विषय पर बात करना सामान्य बनाएं, विश्वास के लिए जगह बनाएं, और महिलाओं को असली विकल्प दें — चाहे वह महिला डॉक्टर से मिलना हो, दुभाषिए की सुविधा लेना हो या फिर खुद से सैंपल देना," डॉ. चालान ने कहा, जो फ़ेडरल सरकार के Own It अभियान से जुड़ी हैं, जो खुद से सर्वाइकल स्क्रीनिंग टेस्ट को बढ़ावा देता है।
यह केवल एक और मेडिकल जांच नहीं है, बल्कि कैंसर को रोकने का एक मौका है। और यह मौका हर किसी को मिलना चाहिए, चाहे वे कहीं से भी आए हों।
SBS Examines का यह एपिसोड यह सवाल उठाता है कि CALD समुदायों की महिलाओं के लिए कैंसर जांच से उपेक्षा का भय कैसे दूर किया जा सकता है और इसके लिए क्या कदम उठाने की ज़रूरत है।