उनीसवीं शतब्दी में भारत और ऑस्ट्रेलिया के बीच ब्रिटिश राज के आलावा सम्बंदों को घेरा करने में एक ठोस योगदान उन ऑस्ट्रेलियाई पुरुषों और महिाओं का भी था जिनहोने भारत में काफी समय व्यापार, पढाई, या ईसाई धर्म की सेवा में लगाया.
इनमें सब से पहली गिनती ऑस्ट्रेलियाई धर्म प्रचारकों की है जो भारत के कोने कोने में अक्सर आया जाया करते थे.
एडिलेड स्तिथ प्रोफेसर मार्ग्रेट एल्लेन जिन्होंने साउथ ऑस्ट्रेलिया से ईसाई धर्म प्रचार कर रही स्त्रियों के बारे में काफी लम्बे समय तक शोध किया है के अनुसार ऑस्ट्रेलियाई और भारतीये महिलाऐं ब्रिटिश राज और उसकी साम्राज्यवादी ताकत का शिकार थी. इस लिये एक दूसरे को समझ पाने में गर्मजोशी वाली मेहमान नवाज़ी की कीमत समझती थी.
भारतीये महिलाओं को अपने और ब्रिटिश महिलाओं के बराबर तो नहीं देखा जाता था परन्तु उन्हें ज्यादातर हंसमुख और सकारात्मक ही चित्रित किया गया है.