हारून कहते हैं कि उन्हें नानक और शिव अपनी ओर खींचते हैं, इनकी धार्मिक पहचान की वजह से नहीं बल्कि इनके उस इतिहास से जुड़े होन के कारण जो भारतीय उपमहाद्वीप का इतिहास है. वह कहते हैं कि जब वह पाकिस्तान में धर्मस्थलों पर रिसर्च कर रहे थे तो उन्हें कई ऐसे धर्मस्थल मिले जहां शिव मौजूद थे. कश्मीर में एक मंदिर का वह खासतौर पर जिक्र करते हैं. वह कहते हैं, “इस मंदिर में लोग कुत्तों को पूजते हैं क्योंकि यहां शिव का एक अवतार स्थापित है जिसकी सवारी कुत्ता है.”
और इस तरह जब बार-बार उन्हें अपने सफर में शिव के निशान मिले तो उन्होंने अपनी किताब का नाम रखा “इन सर्च ऑफ शिवाः अ स्टडी ऑफ फोक रिलीजस प्रैक्टिसीज़ इन पाकिस्तान”. इसी तरह उन्हें गुरु नानक देव का जीवन आकर्षित करने लगा तो वह उन रास्तों पर निकले जहां जहां बाबा नानक अपने चेले भाई मर्दाना के साथ गए थे. वह बताते हैं, “पाकिस्तान में 135 गुरुद्वारे हैं. नानक ने अपनी जिंदगी का ज्यादा हिस्सा यहां बिताया. तो मैं उनके वजूद को, उनकी शख्सियत को यहां खोजना चाहता था.” और इसी यात्रा पर उन्होंने किताब लिखी जिसे नाम दिया, “वॉकिंग विद नानक.”
एसबीएस को दिए इस एक्सक्लूसिव इंटरव्यू में हारून खालिद कहते हैं कि भारत और पाकिस्तान के बीच टू नेशन थिअरी में ज्यादा दम नहीं है क्योंकि दोनों मुल्कों बल्कि बांग्लादेश के लोगों के बीच भी सांस्कृतिक समानता इतनी ज्यादा है कि आप अलग करके देख ही नहीं सकते. लेकिन, क्या ये दोनों मुल्क कभी एक हो पाएंगे? हारून कहते हैं, “पाकिस्तान में इस्लामिक कट्टरवाद और भारत में बढ़ते हिंदू कट्टरवाद के चलते ऐसा तो शायद नहीं हो पाएगा कि दोनों मुल्क एक हो जाएं लेकिन शायद कभी ऐसा हो कि यूरोपीय संघ की तर्ज पर बॉर्डर अप्रासंगिक हो जाए, लोग एक दूसरे के यहां आ जा सकें, काम कर सकें.”

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