‘सेक्सी दुर्गा’ ऑस्ट्रेलिया आ रही है. सिडनी फिल्म फेस्टिवल में चुनी गईं चार भारतीय फिल्मों में से एक है ‘सेक्सी दुर्गा’. सनल कुमार के निर्देशन में बनी इस फिल्म में केरल के मर्दवादी समाज की बात होती है, बहुत तीखे अंदाज में. यह फिल्म रोटरडैम के प्रतिष्ठित इंटरनैशनल फिल्म फेस्टिवल में दिखाई जा चुकी है और इसकी बहुत तारीफ हो रही है. फिल्म का ट्रेलर ही बहुत रोमांचक है. पूरी फिल्म एक रात की कहानी है. पूरी फिल्म रात में शूट हुई है और बताते हैं कि फिल्म का कोई स्क्रीनप्ले नहीं था. उत्तर भारतीय लड़की दुर्गा एक दक्षिण भारतीय युवक कबीर से मिलती है और फिर उनके साथ क्या होता है, यही फिल्म है.
किसी प्रतिष्ठित अंतरराष्ट्रीय फिल्म समारोह में भारत की चार-चार फिल्में एक साथ होना एक अद्भुत संयोग है क्योंकि बड़े फिल्म समारोहों से पहले अक्सर चर्चा यही रहती है कि भारत की एक फिल्म आई है या एक भी फिल्म नहीं आई है. लेकिन सिडनी में चार-चार फिल्में भारत से हैं. इनमें से तीन फीचर फिल्में हैं और एक डॉक्युमेंट्री फिल्म. डॉक्युमेंट्री फिल्म है ‘द इनसिग्निफिकेंट मैन’.
‘द इनसिग्निफिकेंट मैन’ आम आदमी पार्टी के नेता अरविंद केजरीवाल के राजनीतिक उभार पर बनी है और कई अंतरराष्ट्रीय फिल्म फेस्टिवल्स में दिखाई जा चुकी है. और एक फिल्म है ‘न्यूटन’. यह भी भारतीय राजनीति के एक चेहरे को दिखाती फिल्म है लेकिन इसका अंदाज जुदा है. इसमें थोड़ी कॉमेडी है तो थोड़ा सा थ्रिलर भी है. फिल्म के निर्देशक हैं अमित मासुरकर. वह कहते हैं, “न्यूटन हमारे मुख्य किरदार का नाम है. यह फिल्म इलेक्शन के एक दिन पर आधारित है. छत्तीसगढ़ में इलेक्शन हो रहे हैं और कहानी उसी एक दिन पर आधारित है. इसमें हम दिखाते हैं कि कैसे ऐसे इलाकों में चुनाव होते हैं और क्या क्या समस्याएं होती हैं. और यह एक फिल्म एक कॉमेडी है लेकिन सिर्फ कॉमेडी नहीं है.”
फिल्म न्यूटन को भी अंतरराष्ट्रीय स्तर पर जोरदार तारीफें मिली हैं. बर्लिन फिल्म समारोहों में इसे लोगों ने देखा और खूब सराहा था. फिल्म में राजकुमार राव न्यूटन के किरदार में हैं और उनके सामने एक फौजी अफसर की भूमिका में हैं पंकज त्रिपाठी. निर्देशक अमित मासुरकर बताते हैं, “राजनीति और मनोरंजन के बीच का फासला कम हो रहा है. आप समाचार चैनल देखें तो वहां भी राजनेता लोगों का मनोरंजन ही करते है.”

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अमित की यह फिल्म राजनीतिक माहौल से निकली है. उन्हें लगता है कि भारत के लोग राजनीतिक फिल्मों को खूब पसंद करते हैं और वह खास तौर पर लोकतांत्रिक मूल्यों पर फिल्म बनाना चाहते थे. वह बताते हैं, “मैं डेमोक्रेसी पर फिल्म बनाना चाहता था. लोकतंत्र के जो मूल आदर्शों और असल में जो होता है उसमें जमीन आसमान का अंतर है. मुझे लगा कि इस पर एक कहानी बन सकती है. तो सोचा कि पोलिंग बूथ के अंदर का नजारा दिखाया जाए. लेकिन मुंबई का पोलिंग बूथ तो किसी को देखना नहीं है. यहां तो लोग आते हैं चले जाते हैं. तो मैंने इस पोलिंग बूथ को छत्तीसगढ़ में रखा.”
ऐक्टिंग के लिहाज से मुक्तिभवन या होटल सालवेशन भी काफी समृद्ध फिल्म है. इसमें मुख्य भूमिका में आदिल हुसैन हैं. मुक्तिभवन उन चार भारतीय फिल्मों में से एक है, जो इस बार सिडनी फिल्म फेस्टिवल में दिखाई जा रही हैं. मुक्तिभवन बनारस पर बनी है फिल्म है और कई अंतरराष्ट्रीय अवॉर्ड जीत चुकी है. फिल्म के डायरेक्टर शुभाशीष भूटियानी बताते हैं, “बनारस में ऐसे होटल होते हैं जहां लोग मरने के लिए जाते हैं. लोग मानते हैं कि बनारस में मरने से मोक्ष मिलता है. इसलिए लोग वहां जाते हैं और उन होटलों में रहते हैं जिन्हें मुक्तिभवन कहते हैं. लेकिन वहां का नियम है कि आप 15 दिन रह सकते हैं उससे ज्यादा नहीं.”
घूमते-घूमते शुभाशीष बनारस पहुंचे और वहां मुक्तिभवन देखने के बाद यह कहानी उनके दिल में घर कर गई. इसी पर उन्होंने फिल्म बनाई. वह कहते हैं, “मुक्तिभवन एक बाप-बेटे की कहानी है. बाप मरना चाहता और बेटा उसे लेकर बनारस जाता है.” और फिर जिंदगी और मौत के बीच झूलते रिश्तों को दिखाती मुक्तिभवन या होटल साल्वेशन.
इन सभी फिल्मों की खास बात है कि ये एकदम खांटी भारतीय फिल्में हैं जिनमें भारत के मुद्दे भारतीय तरीकों से ही दिखाए गए हैं. लेकिन इनकी कहानी ऐसी है जिनमें हर देश के लोगों के लिए कुछ न कुछ है.