जो लोग कैजुअल कॉन्ट्रैक्ट पर कम से कम एक साल तक लगातार काम कर चुके हों, वे पर्मानेंट कॉन्ट्रैक्ट के हकदार हैं.
फेयरवर्क ऑम्बड्समन का यह फैसला इस महीने की शुरुआत से प्रभावी हो गया है. इसके मुताबिक यदि कोई व्यक्ति 12 महीने से अधिक समय तक नियमित तौर पर कैजुअलर काम कर रहा है तो वह अपने नियोक्ता से फुल टाइम या पार्ट टाइम कॉन्ट्रैक्ट की मांग कर सकता है.
जो लोग लगातार एक साल तक 38 घंटे प्रति सप्ताह या उससे ज्यादा की औसत से काम कर चुके हैं, वे फुल टाइम कॉन्ट्रैक्ट की मांग कर सकते हैं. जिनके घंटे 38 प्रति सप्ताह से कम बनते हैं, वे पार्ट टाइम कॉन्ट्रैक्ट के अधिकारी हैं.
ऑस्ट्रेलियन काउंसिल ऑफ ट्रेड यूनियन्स एसीटीयू की अध्यक्ष मिशल ओ नील ने इस फैसले का स्वागत किया है. उन्होंने कहा कि हर कर्मचारी को सुरक्षित काम पाने का अधिकार है.
नील ने कहा, 'कुछ लोग कहेंगे कि नहीं हमें तो कैजुअल ही रहना है. यह आपकी इच्छा है. लेकिन ज्यादातर कर्मचारी काम में स्थायित्व चाहते हैं. और यह एक अहम बदलाव है.'
हालांकि कर्मचारी की मांग मानना या ना मानना नियोक्ता के अधिकार क्षेत्र में होगा लेकिन अपने फैसले के लिए उसे वाजिब कारण देने होंगे. इन वाजिब कारणों में उस जगह का ही खत्म हो जाना आदि शामिल हैं.
हालांकि कैजुअल काम को खासतौर पर परिभाषित नहीं किया गया है लेकिन आमतौर पर कैजुअल कर्मचारियों को वैतनिक अवकाश या बीमारी की छुट्टी नहीं मिलती है.