मैं तबला सीखना चाहता त लेकिन मेरे पिताजी ने सलाह दी कि मैं सारंगी बजाना सीखू. आज सोचता हूँ कि वह कितना सही थे कि उन्होंने मुझे इस कला की तरफ प्रोत्साहित किया। - अनीता बरार से बात करते हुये वह याद करते है।
जानेमाने सारंजी वादक प. भगवान दास मिश्रा जो उनके नाना जी थे और पिता प. सन्तोष कुमार मिश्रा जी, उनके गुरू रहे और उनको बराबर शिक्षा दी।
उनके पहले गुरू थे उनके दादा जी प. नारायण दास मिश्रा और उनकी शिक्षा से ही वह न केवल वादन में प्रवीण हो गये ब्लकि उन्होंने गायन भी सीखा।
प. संगीत जी ने पुराने समय की सारंगी वादन को पुनर्जीवित किया जिसमें तंताकरी और गायिकी स्टाइल से सारंगी बजाई जाती है।


