घरेलू हिंसा: चेतावनी संकेत कैसे पहचानें और मदद कहां से लें

Stop Sexual abuse Concept, stop violence against Women Source: Getty Images/Shubha Kumar
हर साल 25 नवंबर को दुनिया भर में ‘महिलाओं के खिलाफ हिंसा उन्मूलन का अंतरराष्ट्रीय दिवस’ मनाया जाता है, लेकिन कई महिलाएं आज भी अपने जीवन में इस समस्या से जूझ रही हैं। ऑस्ट्रेलिया में भारतीय समुदाय की कई महिलाएं डर, सामाजिक सोच और भविष्य की चिंताओं के कारण मदद मांगने से कतराती हैं। ऐसे में सामुदायिक संगठन उन्हें ज़रूरी सहायता, जानकारी और कानूनी सलाह देते हैं। इस बातचीत में 'इंडिया क्लब' की अध्यक्ष शुभा कुमार घरेलू हिंसा के कारण, शुरुआती संकेत, मदद पाने के रास्ते और समाज की भूमिका के बारे में जानकारी दे रही हैं।
नमस्कार आप सुन रहे हैं एसबीएस हिंदी और मैं हूं शशि कुमार। आज हम बात कर रहे हैं एक ऐसे विषय पर जो हमारे समाज में मौजूद होते हुए भी अक्सर अनदेखा रह जाता है घरेलू हिंसा या डोमेस्टिक वायलेंस। ऑस्ट्रेलिया में खास तौर से भारतीय और दक्षिण एशियाई प्रवासी समुदाय में यह समस्या तेजी से सामने आ रही है। कई महिलाएं लंबे समय तक चुप रहती हैं और तब आवाज उठाती हैं जब हालात बहुत बिगड़ चुके होते हैं। इस मुद्दे को बेहतर तरीके से समझने के लिए हमने बातचीत की शुभा कुमार से जो लंबे समय से प्रवासी परिवारों और महिलाओं के समर्थन के लिए सक्रिय रूप से काम कर रही हैं। वे इंडिया क्लब की अध्यक्ष हैं जो एक गैर लाभकारी संगठन है। यह संगठन भारतीय ऑस्ट्रेलियाई समुदाय के कल्याण के लिए काम करता है। शुभा जी। एसबीएस हिंदी में आपका बहुत बहुत स्वागत है।
धन्यवाद है आपका मुझे कांटेक्ट करने के लिए।
जी, और आज हम आपसे बात करने वाले हैं घरेलू हिंसा के बारे में।
जी हां।
सबसे पहले यह बताइए कि ऑस्ट्रेलिया में खासतौर से भारतीय समुदाय में घरेलू हिंसा की समस्या कितनी गंभीर है?
ऐसा है ऑस्ट्रेलिया में तो काफी गंभीर है और हम सोचते थे कि अपने इंडियन परिवारों में यह नहीं होता है। लेकिन हम सभी लोग जब शुरू में पता चला कि फैमिली वायलेंस यहां भी है और यहां भी काफी सीरियस है, बहुत छुपी हुई है, बाहर नहीं आती है। लेकिन यह जो समस्या है, यह काफी सीरियस है।
जी, आपके अनुसार भारतीय समुदाय में घरेलू हिंसा के प्रमुख कारण क्या हैं?
डोमेस्टिक वायलेंस का प्रमुख कारण तो यही है ना कि द वन पर्सन वांट्स कंट्रोल ओवर द अदर पर्सन और वह कंट्रोल जो है वह डिफरेंट अ तरीकों से हो सकता है। इमोशनल होता है, फिजिकल होता है लोग। उसमें कुछ मेंटल हेल्थ इशू की वजह से हो सकता है। कुछ हो सकता है कि किस एनवायरनमेंट में से वह पर्सन आया है जो डोमेस्टिक वायलेंस कर रहा है अपने पार्टनर के अगेंस्ट। उनके एनवायरनमेंट के भी अ-अप्रभाव उनके ऊपर हो सकता है, लेकिन यूज मोस्टली यह मेंटल हेल्थ रिलेटेड होता है डोमेस्टिक वायलेंस और और पावर कंट्रोल
पर्सनल डिजायर फॉर पावर कंट्रोल।
अक्सर देखा जाता है कि पीड़ित महिलाएं लंबे समय तक चुप रहती हैं और जब स्थिति बहुत बढ़ जाती है, तभी वे मदद मांगती है। ऐसा क्यों होता है?
ऐसा काफी कारणों से हो सकता है। एक तो कारण यही होता है कि किसी को बताने में थोड़ी शर्म महसूस होती है या वीकनेस महसूस होती है कि मेरे साथ हो रहा है तो बताना नहीं चाहती हैं और दूसरा तो इग्नोरेंस होती है। उनको मालूम ही नहीं है कि उनके क्या राइट्स हैं, यहां के लॉज क्या है? डोमेस्टिक वायलेंस क्राइम हियर और हेल्प अवेलेबल। दे कैन एप्रोच पीपल फॉर
यहां। ऑस्ट्रेलियन गवर्नमेंट पर डोमेस्टिक वायलेंस पर उनका बहुत ध्यान है। काफी नए नए प्रोग्राम इंट्रोड्यूस होते रहते हैं। पुलिस की पूरी सपोर्ट होती है। पुलिस में भी डोमेस्टिक वायलेंस के लिए एक ऑफिसर असाइन होता है जो पूरा इनको मॉनिटर करता है, उनको एड्रेस करता है, हेल्प करते हैं कम्युनिटी की। तो यह सब चीजों का न पता होने का और दूसरों को पता न चल जाए अपने घर की बात। यह यही मेनली रीजन होते हैं।
रेड फ्लैग या शुरुआती संकेत क्या हो सकते हैं जिनसे महिलाएं समझ सकें कि रिश्ते में हिंसा या दुर्व्यवहार शुरू हो रहा है।
रेड फ्लैग तो यही है ना कि पर्सन जो है उनको दबाने की कोशिश में है। उनको इस तरीके से बात कर रहा है, उनको छोटा दिखाने की कोशिश में है, नीचा दिखाने की कोशिश में है। उनके फाइनेंस को कंट्रोल कर दिया। उनको आईसोलेट कर दिया। अपने फ्रेंड से नहीं मिलोगे। इस तरीके की जो ये सब बातें होती हैं ये रेड फ्लैग होते हैं कि पर्सन को अपने अंदर से फील होता है कि उस पर्सन की प्रेजेंस में उनको घबराहट होती है। पर्सन इस नॉट देयर फील मोर कंफर्टेबल। यह बहुत बड़ा रेड फ्लैग है।
घरेलू हिंसा सिर्फ शारीरिक ही नहीं होती। भावनात्मक, आर्थिक और डिजिटल एब्यूज भी इसके रूप हैं। महिलाएं इन विभिन्न रूपों को कैसे पहचान सकती हैं?
इमोशनल एब्यूज में तो एक तो यही है कि उनको हर बात में उनको
डांटना या उनको झड़खना, उनसे बोलना कि तुमने यह काम ठीक नहीं किया, तुम कभी कुछ ठीक कर नहीं सकते हो और या दूसरों के सामने उनके मजाक उड़ाना। उनकी कुछ ऐसी बातें कहना उनके फ्रेंड्स के बीच में कि उनकी बेइज्जती करना। तो ये सब चीजें जो है, इमोशनल जो है, तरीके होते हैं तो अपना कंट्रोल दिखाने के और पर्सन जो है वह हमेशा इस तरीके से अनकंफर्टेबल फील करता है उस प्रेजेंस में। मनी बिल्कुल लिमिटेड देना या उनको बैक करना पड़ेगा कि नहीं। मुझे मनी चाहिए या मुझे यह चीज चाहिए। जो भी उनकी जरूरत है या वह कभी यह कर सकते हैं कि मैं अगर तुम यह नहीं करोगी तो हम अपने को हार्म कर लूंगा या मैं बच्चों को हार्म कर दूंगा। देयर आर सो मेनी थिंग्स दैट पर्सन हु इज सेफ्ट्रिन। डोमेस्टिक वायलेंस विल बी एबल टू पिक देम अप। दिस इज नॉट राइट। दिस इज नॉट गोइंग द राइट वे?
कई परिवारों में घरेलू हिंसा को घर का मामला कह कर दबा दिया जाता है। इस सोच को बदलने के लिए समुदाय स्तर पर क्या किया जा सकता है?
सिडनी में काफी कम्युनिटी ऑर्गेनाइजेशन है। इंडियन कम्युनिटी ऑर्गेनाइजेशन जो इन सब को एड्रेस करते हैं और लोगों को
इनवाइट करते हैं। उन लोगों को एजुकेशन देते हैं कि यह डोमेस्टिक वायलेंस का इश्यू है। अगर आप देखते हैं किसी को अपने फ्रेंड को तो आप भी इन रेड फ्लैग्स को पकड़िए। एक पर्सन बहुत क्वाइट है। आप बात करने में घबरा रहा है और हर बात में बहुत अपोलोजिटिक है। सो दिस पर्सन इज नॉट लिविंग इन राइट एनवायरमेंट। सो देन दे हैव टू सपोर्ट एंड एंकरेज द फ्रेंड। उससे पूछ सकते हैं कि भाई आर यू ओके, एवरीथिंग ओके।
कई मामलों में हिंसा करने वाला व्यक्ति माफी मांग लेता है या बदलने का वादा करता है और पीड़ित शिकायत दर्ज नहीं कराती। ऐसे मामलों में क्या सावधानियां जरूरी है?
आप बिल्कुल ठीक कह रहे हैं, करते हैं और फिर एकदम पलट जाते हैं। एकदम चार्मिंग हो जाएंगे। और वह है एक बार चल जाएगा, दो बार चल जाएगा। यह बार बार नहीं चलेगा। जब यह पैटर्न है, महिला को समझ जाना चाहिए कि यह सिर्फ एक पैटर्न है। यह सिर्फ दिखावा है। यह इसलिए किया जाता है कि वह हेल्प नहीं मानती है और इसमें बहुत लोग। इसमें फंस जाते हैं। वह काफी टाइम तक नहीं करते हैं, लेकिन जहां पैटर्न दिखाई दे रहा है, उनको जो है सावधान होना हो जाना चाहिए। उनको सोचना चाहिए। उनको अपने सेफ्टी का और अपनी सुरक्षा का ध्यान करना चाहिए और हेल्प मांगनी चाहिए। उनको हेल्प मांगने में बिल्कुल झिझक नहीं करनी चाहिए।
अगर कोई महिला पुलिस से मदद लेती है तो क्या प्रक्रिया अपनाई जाती है? क्या लैंग्वेज बैरियर उनके अधिकारों या सेवाओं को प्रभावित कर सकती है?
ऐसा है कि जहां लैंग्वेज बैरियर आता है, यहां पर ट्रांसलेटर है तो आप हिंदी के हैं। पंजाबी के हैं। मेरा ख्याल है तमिल के हैं, मलयालम के हैं। काफी सारी अपनी इंडियन लैंग्वेज के ट्रांसलेटर हैं। जो लोग इन सब लोगों को लिखकर करते हैं, उनको मालूम होता है कि ट्रांसलेटर कहां से अवेलेबल है तो वह ट्रांसलेटर को बुला लेते हैं। अब मान लीजिए पुलिस में गए हैं। पुलिस को हिंदी पंजाबी नहीं आती या दूसरी लैंग्वेज नहीं आती। तो जो ट्रांसलेटर है वह दोनों के बीच में उनकी बात एक दूसरे को समझाकर सही बात जो है, फिर आगे बढ़ती है।
और अंत में घरेलू हिंसा का सामना कर रही महिलाओं, खासकर प्रवासी भारतीय महिलाओं को आप क्या संदेश देना चाहेंगे?
उनको मैं यह संदेश देना चाहूंगी। जैसे ही उनको समझ में आता है कि यह डोमेस्टिक वायलेंस की तरफ चल रहा है, उनकी सेफ्टी पर, उनके उनकी हेल्थ पर, उनके इमोशनल वेलबीइंग पर असर पड़ रहा है तो यह जो है नॉर्मल सिचुएशन नहीं है। यह एक तरह का पर्सन उनका कंट्रोल है उनके ऊपर तो उनको उससे अपने को बचाना है और उनको हेल्प मांगनी चाहिए। हेल्प मांगने में बिल्कुल झिझक नहीं चाहिए। चाहे अपने किसी फ्रेंड से बात करें या ढूंढ ले ऑर्गेनाइजेशंस को। उनकी इनफार्मेशन काफी रेगुलरली मिल जाती है। गूगल सर्च में ही मिल जाएगी। कोई इंडियन ऑर्गेनाइजेशन है जो डोमेस्टिक वायलेंस पर करता है और जैसा मैंने कहा वह काउंसिल में फोन कर सकते हैं, पुलिस को फोन कर सकते हैं। तो सबसे बड़ा मैसेज यही है कि दे डोंट हैव टू सॉफर थ्रू दिस जितनी जल्दी एक्शन ले सके और अपनी सुरक्षा और अपने बच्चों की सुरक्षा
के लिए कदम ले सके वो ले। और हेल्प
अवेलेबल है। हेल्प मांगने में झिझक ना करें और यह ना सोचें। इसमें कोई स्टिग्मा नहीं है। इसमें कोई ऐसा सोचने का कि कोई क्या सोचेगा? किसी को कुछ मतलब नहीं है, कोई क्या सोचने का क्योंकि उनके साथ गलत हो रहा है और यह सिर्फ ऐसा नहीं है कि सिर्फ उन्हीं के साथ हो रहा है। और लोगों के भी साथ होता है। वह सब भी वे करते हैं कि हेल्प मांगते हैं तो हेल्प दे।
जी शुभा जी। एसबीएस हिंदी से बात करने के लिए आपका बहुत बहुत धन्यवाद।
थैंक यू फॉर हेविंग मी।











