ऑस्ट्रेलियाई सीनेट ने हाल ही में जॉब्स-रेडी ग्रेजुएट बिल पास किया है|
यह बिल 28-26 की बहुमत से पास किया गया जिसके तहत सरकार अब ऐसी डिग्रीयों में अधिक निवेश करेगी जिनसे रोज़गार के बेहतर अवसर पैदा हों|
मुख्य बातें
- इस बिल के चलते आर्ट्स और ह्यूमैनिटीज़ की डिग्रीयों की फीस लगभग दोगुनी हो जाएगी
- विपक्ष का मानना है कि यह बिल आर्थिक रूप से कमज़ोर बच्चों को विशेषकर हानि पहुंचाएगा
- अभिभावकों का मानना है कि यह बिल बच्चों में भेदभाव करता है
संघीय शिक्षा मंत्री डैन टेहन का कहना है कि यह बदलाव इसलिए ज़रूरी हैं ताकि आने वाली पीढ़ी के छात्र रोज़गार को ध्यान में रखते हुए अपनी डिग्री का चुनाव करें|
सरकार विज्ञान, तकनीक, इंजीनियरिंग और गणित, यानि (STEM) की डिग्रीयों में निवेश बढ़ाकर आर्ट्स, लॉ और ह्यूमैनिटीज़ की डिग्रीयों में निवेश घटाएगी|
इस बिल के चलते आगामी वर्ष 2021 से आर्ट्स की डिग्रीयों की फ़ीस लगभग दोगुनी हो जाएगी|
आपको बताते चलें कि ऐसा अनुमानित है, कि, महामारी के चलते जॉब-कट्स और अन्तराष्ट्रीय छात्रों के वापिस न आ पाने की दोहरी मार झेल रहीं यूनिवर्सिटीज अगले पांच साल में सात बिलियन डॉलर तक का नुक्सान उठाएंगी|
ऐसे में ह्यूमैनिटीज़ की फंडिंग में यह कटौती कड़ी निंदा का सामना कर रही है|
नेशनल टर्शियरी एजुकेशन यूनियन की अध्यक्ष एलिसन बार्न्स का कहना है कि यह बिल ऑस्ट्रेलियाई यूनिवर्सिटीज़ पर आये मौजूदा रोज़गार और फंडिंग के संकट के लिए कोई उपाय तो लाया नहीं है, बल्कि, 12,000 नौकरियों और लगभग 3 बिलियन डॉलर के दोहरे नुक्सान का वज्रभार लिबरल्स और नेशनल्स ने छात्रों और यूनिवर्सिटीज़ के माथे मढ़ दिया है|
मौजूदा समय में यूनिवर्सिटी जाने वाले ऑस्ट्रेलियाई बच्चों की फीस का 58 फीसद भार सरकार उठाती है| इस बिल के पास होने के साथ ही न ही केवल ह्यूमैनिटीज़ की डिग्रीयों से फंडिंग कम होगी, बल्कि ऐसा अनुमानित है कि यह पूरा भार घट कर 52 फीसद रह जायेगा|
श्वेता गोयल क्वींसलैंड में रहने वाली एक गृहणी हैं जो बीस साल के लम्बे अंतराल के बाद वापिस इनफार्मेशन टेक्नोलॉजी में मास्टर्स करना चाहती हैं |
वहीँ दूसरी तरफ उनके बेटे अगले कुछ वर्षों में यूनिवर्सिटी जाने ले लिए तैयार हैं, और ह्यूमैनिटीज़ में अपना करियर बनाना चाहते हैं|
जहाँ एक ओर ये बिल उनके लिए राहत की खबर लाता, वहीँ उनके बेटे के सपनो को कुछ और महंगा कर जाता है|
उनका कहना है कि हालाँकि यह बिल उनके लिए ख़ुशी की खबर है पर वो इस बिल का समर्थन नहीं कर सकतीं |
मेरे दो बेटे हैं- एक को मैथ्स में दिलचस्पी है और दूसरे को ह्यूमैनिटीज़ में | माँ होकर जब मैं उनके रुझानों में फ़र्क नहीं कर रही, तो यह अधिकार सरकार को किसने दिया?
"कल को जब मेरे दोनों बेटे यूनिवर्सिटी पार करके निकलेंगे तो एक पर क़र्ज़ का बोझ ज़्यादा होगा और दूसरे पर कम क्योंकि सरकार को एक की डिग्री दूसरे की डिग्री से ज़्यादा ज़रूरी लगी| मैं इसका समर्थन कैसे करूँ?"
कुछ ऐसा ही मानना तासमेनिया की निर्दलीय सीनेटर जेकी लैम्बी का भी है| इसीलिए उन्होंने संसद में बिल के ख़िलाफ़ वोट दिया|
"मैं ऐसे किसी बिल का समर्थन नहीं कर सकती जो हमारे सबसे कमज़ोर वर्ग के बच्चों के लिए सबसे कठिन परिस्थितियां पैदा करे|
यह ऐसा है जैसे हम अपने ही बच्चों से कह रहे हों कि तुम भले ही कितने प्रतिभावान क्यों न हो, सपने थोड़े सस्ते देखो!"
ग्रीन्स शिक्षा प्रवक्ता मेहरीन फ़ारूक़ी ने अपने ट्वीट में इस बिल को 'निर्दयी', 'ज़ालिम' और 'कभी ठीक न हो पाने वाला संकट' कहा|
जहाँ बिल को साइंस एंड टेक्नोलॉजी ऑस्ट्रेलिया जैसे संस्थान इस बिल का स्वागत कर रहे हैं वहीँ श्वेता जैसी माएँ भी हैं जिनकी चिंताएं और ज़मीनी हैं|
"हम अपने भविष्य में मशीनें नहीं बड़ी करना चाहते| ह्यूमैनिटीज़ की पढ़ाई समाज चलाते रहने के लिए ज़रूरी हैं| आज की दुनिया में हम अपने बच्चों में मानवता बचा लें जाएँ ये भी उतना ही ज़रूरी है जितना उनका तकनीकी विकास... शायद थोड़ा ज़्यादा ही!"