एचआईवी ये नाम सामने आते ही आज भी हर किसी की पेशानी पर बल पड़ जाते हैं, मन में चिंता का भाव आ जाता है. कभी दुनिया की सबसे घातक मानी जाने इस बीमारी का पता चले करीब-करीब 4 दशक हो गए हैं. लेकिन आज इस बीमारी को नियंत्रित भी किया जा सकता है और इसका इलाज भी संभव है.
प्रवासी गे और बाईसैक्सुअल पुरुषों में है बीमारी को लेकर शर्म
एक नई रिपोर्ट के मुताबिक देश से बाहर पैदा हुए गे और बाइसैक्सुअल पुरुषों में एचआईवी के पता चलने और उसके उपचार में एक बड़ा अंतर है. जो इस बीमारी को लेकर होने वाले भेदभाव को खत्म करने की ज़रूरत की ओर ध्यान दिलाता है.
चीनी-ऑस्ट्रेलियाई जस्टिन ज़ाओ को साल 2009 में एचआईवी का पता चला था. जब अपनी बीमारी की स्थिति के बारे में उन्होंने पता किया तो उन्हें अपने भविष्य के बारे में कोई ज्यादा उम्मीद नहीं दिखी थी. ये ही नहीं 31 साल के जस्टिन कहते हैं कि कई गे पुरुषों के लिए एचआईवी टेस्ट करवाने का ख़याल अभी भी डराने वाला है.
एचआईवी के उपचार में सफल है ऑस्ट्रेलिया
एचआईवी वायरस मनुष्य के प्रतिरक्षा प्रणाली यानी इम्यून सिस्टम पर हमला करता है. हालांकि ये ज्यादातर यौन संचारित होता है लेकिन ये शारीरिक द्रव्यों के आदान प्रदान से भी फैल सकता है. ऑस्ट्रेलिया की बात करें तो एड्स के उपचार में यहां वर्तमान में संयुक्त राष्ट्र के लक्ष्य को पूरा किए जाने में कामयाबी हासिल हो रही है. लक्ष्य ये है कि 90 फीसदी ऐसे लोग जो कि वायरस के साथ जी रहे हैं उन्हें अपना एचआईवी का स्तर पता हो. और ये सभी 90 फीसदी लोग उपचार ले रहे हों. उनमें से 90 फीसदी लोग वायरल इन्फैक्शन में कमी महसूस कर पा रहे हों.
लेकिन शोधकर्ता इस बात से चिंतित हैं कि ऑस्ट्रेलिया में नए संक्रमणों में अपेक्षित गिरावट देखने को नहीं मिल रही है. डॉक्टर टैफीरेई माराकुटीरा बर्नेट इंस्टिट्यूट में एक शोधकर्ता हैं. उन्होंने पाया है कि स्थानीय लोगों के मुकाबले प्रवासी गे और बाइसैक्सुअल लोग एचआईवी परीक्षणों, निदान और उपचार में पिछड़ रहे हैं. वो कहते हैं कि एचआईवी से संक्रमित स्थानीय लोगों में से 85 फीसदी लोगों का सफल उपचार किया गया है. लेकिन जब बात प्रवासियों की आती है तो ये आंकड़ा महज़ 66 फीसदी ही है. इस अंतर के पीछे के कारणों के बारे में वो कहते हैं. ये ही नहीं ऐसे लोगो भी उपचार के इस आंकड़े में पीछे छूट रहे हैं जो कि दक्षिण-पूर्वी एशिया से आए प्रवासी हैं या फिर जो मेडिकेयर के लिए पात्र नहीं हैं. ऑस्ट्रेलियन फेडरेशन ऑफ एड्स ऑर्गेनाइज़ेशन्स से डेरिल ओ डोनेल चेतावनी देते हैं कि इनमें से बहुत लोग अन्तर्राष्ट्रीय छात्र हैं.
जागरुकता की ज़रूरत
हालांकि एचआईवी अभी भी जन स्वास्थ्य का एक बड़ा मुद्दा है लेकिन आधुनिक चिकित्सा से इसमें नियंत्रित स्वास्थ्य की स्थिति बनी रह सकती हैं. हालांकि इससे जीवन प्रत्याशा में थोड़ा असर ज़रूर पड़ेगा. डॉक्टर मुरुकुटीरा कहते हैं कि आंकड़े बता रहे हैं कि इस बीमारी के इर्द-गिर्द की समाजिक शर्म को हटाने के लिए अभी भी जागरूकता अभियान की ज़रूरत है. और ये बताने की भी कि एचआईवी का परीक्षण और उपचार सभी के लिए उपलब्ध है.
जस्टिन ज़ायो ने अपने उपचार की शुरूआत साल 2012 में की थी. अब उनके एचआईवी संक्रमण का स्तर इतना नीचे है कि इसे पकड़ा नहीं जा सकता. ये अब ब्लड टेस्ट में भी नहीं सामने आते. इसलिए अब ये वायरस किसी और मनुष्य में नहीं फैल सकता. वो अब एक स्वस्थ्य ज़िंदगी जी रहे हैं. लेकिन उन्हें इस स्थिति को नियंत्रित रखने के लिए दवाएं लेती रहनी होंगी. वो अब एलजीबीटीक्यू प्लस के लिए काम करने वाली संस्था एकोन के लिए काम करते हैं. वो उन लोगों को प्रोत्साहित करते हैं जो कि एचआईवी टेस्टिंग के लिए आगे आने में हिचकिचाते हैं.