हाल ही में प्राप्त किये गए कैबिनेट के गोपनीय दस्तावेज दर्शाते हैं की ऑस्ट्रेलिया को ईरान के राजदूतों को १९९० के दशक में वीसा प्रदान करने में हिचकिचाहट थी.
इसका कारण बस कुछ महीनो पहले कैनबेरा में ईरान के दूतावास पर हुए हमले की वजह से था.
उस समय ऑस्ट्रेलिया के प्रधानमंत्री Paul Keating थे और १ जनवरी २०१७ को जारी किये गए यह कागज़ात दिखाते हैं की उनके मंत्रिमंडल ने इस बात को स्वीकृति दी की यदि सुरक्षा संघटन ईरान के राजदूतों को वीसा प्रदान करने के पक्ष में नहीं है तो ऐसा ही होगा.
१९९२ में कैनबेरा स्तिथ ईरान के दूतावास पर हमला किया गया था.
राजनीतिक प्रदर्शनकारियों ने कमरों में आग लगा दी, दूतावास के गेट के बाहर खडी एक कार के शीशे तोड़ दिये और दूतावास के एक कर्मचारी पर स्क्रूड्राइवर से हमला भी किया.
इस हमले का हर्ज़ाना ऑस्ट्रेलिया वासियों ने लगभग आधा मिलियन डॉलर की राशि मुआवज़े के रूप में चुकाया.
National Archive of Australia द्वारा जारी इन कैबिनेट कागज़ातों से पता चलता है की हालांकि ऑस्ट्रेलियाकी सरकार ने मुआवज़ा विश्व स्तरीय नीति के तहत ही दिया परन्तु राशि देते समय इस बात को भी ध्यान में रखा गया की यहाँ की सरकार ने दूतावास और उसके कर्मचारियों की सुरक्षा में कमी कर दी थी.
इस हमले के तुरंत बाद दूतावास के एक कर्मचारी Ali Bourgeh ने ईमारत के सामने खड़े होकर जोर से चीला कर कहा की फ़ेडरल पुलिस ने दूतावास की चेतावनियों को नज़रअंदाज़ किया.
"The federal police of Australia is responsible for whatever happened here because they were (notified) at least seven hours before that we were going to be attacked possibly."
National Archives ने इन कागाजतो को १ जनवरी को जारी करने का फैसला इस घटना की याद में किया है.
इन कागज़ातों से यह भी पता चला है की ईरान के राजदूत ने अपने दूतावास और वहां कार्यरत कर्मचारियों को हुए जोखिम के लिये एक दशमलव सात मिलियन डॉलर की राशि हर्ज़ाने के रूप में ऑस्ट्रेलियाई सरकार से मांगी.
सरकार ने महसूस किया की इस घटना के सिलसिले में दूतावास ने सरकार के साथ बहुत थोड़ा ही सहयोग किया.
और छह महिने बाद मंत्रिमंडल ने यह फैसला लिया की यदि ईरान की राजदूतों को ऑस्ट्रेलिया की आतंरिक सुरक्षा में रुकावटडालने का आरोपी पाया जाएगा तो उन्हें यहाँ का वीसा नहीं मिलेगा.
जिस आदमी ने ईरान के दूतावास पर हुए हमले को अपने कैमरा में कैद किया वह एसबीएस में कार्यरत Mick O'Brien थे.
और उन्हें आज भी सब कुछ याद है.
"I raced inside, all hell had broken loose. It was noisy, it was chaotic it was pretty nerve-wracking, and the hearts were racing I can tell you."
१९९० के प्रारंभ में Bob- Hawke- और Paul Keating- के बीच राजनितिक युद्ध भी चल रहा था जो Paul Keating- के प्रधानमंत्री बनने पे समाप्त हुआ.
Paul Keating- ने आस्ट्रेलियावासियों पर अपनी छाप काफी पहले ही अपने भाषा प्रयोग से छोड़ दी थी.
(Speaker) "Order! Order! The Member for Higgins!"
(Keating) "The answer is, mate, because I want to do you slowly." (jeering) "I want to do you slowly." (uproar)
इस रंगीन भाषा और विनोदपूर्णता के बावज़ूद Keating- सरकार आर्थिक मंदी के प्रभावों से झूज रही थी.
और Keating- के अनुसार ऑस्ट्रेलिया के लिये यह जरूरी था.
बजट में घाटा १५ बिलियन डॉलर के ऊपर जा चुका था और बेरोज़गारी दर ११ प्रतिशत पहुच गयी थी - यह विश्वव्यापी मंदी के बाद से सबसे अधिक थी.
Australian National University के इतिहासकार Nicholas Brown बताते हैं की आर्थिक मुद्दों ने उस समय के कई बड़े निर्णयों पर असर डाला.
"Cabinet is told repeatedly it's not working but also the fact that it's not working is making it so much harder for us to fund the promises that we've made, so that's where the issue of the deferred tax cuts, the ramping up of taxation on cigarettes, tobacco, unleaded fuel and so on. All of this becomes part of that awkward message that the Keating government is having to preach saying we're not going to go down the Liberals' route of putting a GST on everything but equally we're kind of having to impose taxes on basic kind of consumables."
ठीक इसी समय विश्व के दूसरा सिरे पर स्तिथ Yugoslavia- विभाजन से गुज्जर रहा था.
ऑस्ट्रेलिया ने बाल्कन शरणार्थियों के लिये अपने द्वार खोले और यह समुदाय यहाँ चौथे सबसे बड़े सांस्कृतिक गुट के रूप में उभर कर सामने आया.
कैबिनेट को चेतावनी दी गयी यदि यह संख्या और बढ़ती है तो इसमें से कई लोग युद्ध के प्रभावों और उससे जुडे मसलों को ऑस्ट्रेलिया में भी ला सकतें हैं.
परन्तु, एक पूर्व वरिष्ठ सरकारी अधिकारी के अनुसार, इंडिजेनस मामलों की वजह से Paul Keating- का स्थान इतिहास में दर्ज हो गया - ख़ास तौर पे उच्च न्यायालय के माबो मामलें पर उनकी प्रतिक्रिया से.
१५ नवम्बर १९९३ में देश के नाम अपने सन्देश में Keating- ने कहा.
"The court's decision was unquestionably just. It rejected a lie and acknowledged the truth. The lie was terra nullius, the convenient fiction that Australia had been a land of no-one; the truth was native title."
उस समय के इंडिजेनस अफेयर्स मंत्री Robert Tickner- के अनुसार प्रधानमंत्री के नेतृत्व करने में एक पल के लिये भी अस्थिरता नहीं आयी.
"There was really only one shot at this. You know, history would have absolutely condemned us if we had come up with a tawdry, half-baked and unworkable outcome, and as Paul Keating has said himself the cabinet did in 18 months what sometimes would take a decade in other countries to achieve."
मई २०१७ में १९६७ के उस जनमत-संग्रह को पुरे ५० वर्ष हो जाएंगे जिसके बाद इंडिजेनस आस्ट्रेलियावासियों को राष्ट्रीय जनगणना में स्थान प्राप्त हुआ था.
Robert Tickner- मौजूदा प्रधानमंत्री Malcolm- Turnbull- से निवेदन कर रहें हैं की वह इस वर्ष मनाएँ जानी वाली जयंती में और अधिक बदलाव लाएं.
उनके अनुसार यह काम कोई प्रधानमंत्री ही कर सकता है.
"If you want to really drive change, let me tell you no Aboriginal Affairs Minister - whether it's Mother Teresa, Nelson Mandela or me - no-one can change the rules, it's got to be driven as a national leadership issue, as a national priority."